मैं थोडा कम इंसान था

main thoDa kam insan tha

अशोक कुमार

अशोक कुमार

मैं थोडा कम इंसान था

अशोक कुमार

और अधिकअशोक कुमार

    मैं जितना देह में था

    उतना ही देह से बाहर रहा

    मैं जुलूसों में कुचला गया

    नारों में उछाला गया

    मैं झंडों में फड़फड़ाया

    और अंत में बीड़ी के धुआँ होकर

    छाती में खाँसी-सा फँसा रहा।

    मैं अपनी देह में था

    तो सिर्फ़ भूख था

    देह के बाहर मैं एक जटिल आँकड़ा

    एक भद्दी गाली था

    हिंदुओं में थोड़ा ज़्यादा हिंदू

    मुसलमानों में थोड़ा ज़्यादा मुसलमान

    और इंसानों में थोड़ा कम इंसान था।

    मैं दया, करुणा, मदद, मुआवज़ा

    इन सारे शब्दों को अर्थ देता हुआ

    तालियों में पीटा गया

    भाषणों भुनाया गया

    सभाओं के बाद धूल-सा झड़ा

    और अंत के किसी पुराने पुल की तरह

    भरभराकर टूट गया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अशोक कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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