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मैं प्रेम करती हूँ और ठिठक जाती हूँ

main prem karti hoon aur thithak jati hoon

ज्योति चावला

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ज्योति चावला

मैं प्रेम करती हूँ और ठिठक जाती हूँ

ज्योति चावला

और अधिकज्योति चावला

    तुम्हें प्रेम करने से मुझे रोकता है मेरा समय

    कि जब-जब चाहती हूँ तुम पर प्यार लुटाना

    जाने कहाँ से कितने दृश्य हम दोनों के बीच खडे होते हैं

    जिनमें छिपा रहता है कुछ इतना भयावह, इतना विद्रूप

    कि प्रेम एकबारगी ग़ैरज़रूरी-सा लगने लगता है

    इन दिनों जितना तेज़ होती जा रही है तलवारों की धार

    कविता की धार भी उतनी पैनी हो गई है

    बंदूक़ की नोंक पर खडे कर जहाँ किया जा रहा हो प्रेम

    वहाँ तुम्हारे लिए लिखी प्रेम कविता में

    मैं शर्म से धँसा लेती हूँ सिर

    कि इस समय ने ख़ारिज कर दिया है प्रेम कविता को

    ऐसे समय में जहाँ ज़िंदा रहने के लिए

    ज़रूरी हो जाएँ प्रमाण-पत्र वहाँ

    बिना किसी प्रमाण-पत्र के तुम्हारा प्रेम निवेदन

    अप्रामाणिक ही तो है

    अप्रामाणिक और अविश्वसनीय ही तो है

    तुम्हारा मुझ पर सर्वस्व लुटा देना और

    एक भी विज्ञापन दिखना उसका शहर की दीवारों पर

    इन दिनों विज्ञापनों से पटी है हवाएँ इस क़दर

    कि चाह कर भी नहीं रख सकती इन पर

    मैं एक चुंबन तुम्हारे लिए

    इन दिनों खेतों में पनपने लगा है बारूद

    कि मैं उनकी ओर बढ़ती हूँ और ठिठक जाती हूँ

    फूलों से अधिक काँटे हैं डालियों पर इन दिनों

    कि मैं बढ़ाती हूँ हाथ और लहूलुहान हो जाती हूँ

    यह ज़मीन किसकी है, यह आसमान किसका है

    किसका है यह पानी, यह आग किसकी है

    चारों ओर फैले इस भयावह शोर में

    घबरा जाती हूँ मैं और

    बटोरने लगती हूँ इधर-उधर फैले स्पंदन

    फूल, ख़ुशबुएँ

    स्पर्श के एहसास बटोरने लगती हूँ मैं

    बटोरने लगती हूँ अपने प्रेमपत्र जो

    लिखे थे मैंने तुम्हारे लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति चावला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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