महानायक नहीं वह

mahanayak nahin wo

मोहन कुमार डहेरिया

मोहन कुमार डहेरिया

महानायक नहीं वह

मोहन कुमार डहेरिया

और अधिकमोहन कुमार डहेरिया

    उसे पहचानो

    महानायक नहीं है वह

    उसके भाषा-ज्ञान पर शर्मिंदा हो चुके कई मुहावरें और लोकोक्तियॉ

    दुकानों में देशभक्ति को

    विभिन्न फ़्लेवर वाली आइसक्रीम-सा बेचने का उस पर आरोप

    क़ौमों, इतिहासों, राजनेताओं की ख़ूबसूरत भिन्नताओं को

    दो पंजों की ख़ूनी लड़ाई में बदल देने की उसे आदत

    वह कभी लेखक, कभी चित्रकार तो कभी संगीतकार

    जैसे पड़ते हो अचानक उसे

    साहित्य तथा अन्य कलारूप के मिर्गीनुमा दौरे

    नहीं, महानायक नहीं है वह

    यह सच है

    शब्द, पाचनतंत्र, बीमारियों और नींद पर उसका अद्भुत नियंत्रण

    विरोधियों की हर कमज़ोर गेंद पर मारता छक्का

    युवावस्था में ही प्राप्त हो गई हिमालय की गुफा में सिद्धि

    बाल मनोविज्ञान, जवानी के गुप्तरोगों और पारिवारिक समस्याओं का शर्तिया डॉक्टर

    कोई नहीं झुठला सकता

    सिर काटकर ले गए जब हमारे वीरों के पड़ोसी देश के घुसपैठिए सैनिक

    जटिल तकनीकी पेचीदगी में फँस गए थे बदले की कार्रवाई के दौरान सेना के कमांडर

    माननीय ने ही सुझाया था समस्या का हल

    महानायक नहीं फिर भी वह

    माना जाता वह

    दुखों, समस्याओं, नासूरों तथा जीवन की जटिलताओं को

    आनंदमेला में बदल देने वाला अंतरराष्ट्रीय आध्यामिक गुरू

    मात्र उसकी एक नीति-कथा से

    प्रवासी कर देते अपनी धरती माता पर करोड़ों रुपए न्यौछावर

    नूरा कुश्ती का पूरे देश में वह एकमात्र आयोजक

    मनुष्यों को अनाम, अदृश्य दुश्मनों से लड़ा देने वाला चाणक्य भी वही

    सुरुचि और नफ़ासत के डिब्बे में

    हिंसा को कलात्मक ढंग से पैक करने वाला उस जैसा नहीं कोई व्यापारी

    वर्षों से झेल रहे हैं

    सत्य की उसकी प्रयोगशाला में भीषण चीरफाड़

    उसके परिवार के मेंढकनुमा लोग

    नहीं, महानायक नहीँ वह

    यद्यपि यह सच है

    उसके पास ऐसा तेज़

    कि आमना-सामना होते ही आधी रह जाती दुश्मन की शक्ति

    नहीं-नहीं

    महानायक नहीं फिर भी वह

    उसे ध्यान से देखो

    अरे, मदारी है वह तो

    डमरू बजाने की कला में नहीं जिसका कोई सानी

    वुद्धिजीवी और मीडिया को जमूरे में बदल देने की कला में माहिर

    परंतु इतिहास बताता बार-बार यही

    साँप और नेवले की झूठी लड़ाई देखते मात्र दर्शक नहीं होती जनता

    और मजमा लगाना, देश चलाना

    नहीं रहा कभी भी पूरी दुनिया मे एक ही कार्य।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन कुमार डहेरिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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