महामहिम के नाम पत्र के कुछ अंश
mahamahim ke naam patr ke kuch ansh
बंदी के घाव नहीं दीखते
मौन पड़ा रहता है
सारा दिन अँगुलियों के छोर से
मुँदी हुई पलकों को दाब कर
डॉक्टर तानाक्सोस कहता है कि यह क्रिया
सुखमय प्रतीति उपजाती है :
आँखों में शायद शोख रंगों को लहरियाँ—
और ये वर्जित हैं
इसलिए पलकें निकाल देनी होंगी वे निकाल
दी गईं :
फिर भी बंदी अपने दीदों को
अँगुली से दाबे पड़ा रहता है
और यह वर्जित है
डॉक्टर तानाक्सोस कहते हैं
बंदी पलकों के बिना भी वही अनुभव कर
नियम भंग करता है
ऐसी धृष्टता का उपाय है कि बंदी की
आँख को निकाल दो
वे निकाल दी गईं : अपराध जारी है
आँखों के गड्डों को दाब कर अँगुलियों से
बंदी, (तानाक्सोस कहता है) भड़कीले रंगों की
चंचल छटा में सुख पाता है
तानाक्सोस कहता है हाथ काट डालो
काट दिया गया। पर तानाक्सोस कहता है
बंदी की हरकतें वही हैं :
शायद वह कल्पना में सुख ले सकता है।
अब तो यही एक उपाय बच रहता है
उसका क़त्ल कर दो
इतनी दूर तक जाना मैं चाहता न था
किंतु महामहिम से संस्तुति
करता हूँ उसका वध किया जाए
और भी एक संस्तुति मैंने की है :
तानाक्सोस को फ़ौरन हटा लें।
कवियों से मैंने कह दिया है कि हम उनसे
कविता सकारात्मक चाहते हैं
वे वादा कर गए हैं ऐसा ही होगा
बदले में मैंने वादा किया है
कि उनके बच्चे लौटा दूँगा
(जानबूझ कर मैंने यह नहीं कहा कि ज़िंदा लौटा दूँगा।)
औरतें : वे ही तो सूत्र हैं
उन्हें ज़लील करो
और जीत हमारी है
कैसे औरतों को ज़लील करें?
मैं सोचता हूँ
औरतों को अपमानित करने की सर्वोत्तम विधि
यह है कि उसका कोई काम नहीं रहे
मैं सोचता हूँ क्या करूँ
जिससे वे जान जाये कि वे जो भी काम करें
वह उनके विरुद्ध होगा
इसलिए कल रात
मैंने दस औरतों को उनके पतियों की
लाशों से बाँध दिया
समय गए वे अपने पतियों को
हमारे विरुद्ध भड़काने की व्यर्थता समझेंगी
हम जानते हैं कि औरतें
व्यावहारिक होती हैं
क्या आप सहमत हैं?
प्रश्न यह है कि क्या अपने उद्देश्य
जनता को बता दें हम
या उन्हें अटकल लगाते रहने दें?
हमारे उद्देश्य जान कर लोग सन्न रह जाएँगे
पर यह मौन भी तो उन्हें सन्न किए हुए है
मौन ही लोगों को
संतुलनहीन बना देने को काफ़ी है
उनको हर दिशा में आशा करने देता है
हम स्पष्ट कह दें तो सकता छा जाएगा
और वे जड़ पड़े रहेंगे
हम अपने मन की जब करेंगे
यों उद्देश्य ये हमारे हैं इतने अविश्वसनीय
कि जब हम बताते हैं कोई नहीं मानता
क्षमा करें व्यर्थ की बात मैं ले बैठा।
औरों को भी यह उपयोगी विधि लगेगी
षड्यंत्रकारी समूहों को मैं रहने देता हूँ
बस जान लेता हूँ कि क्या कर रहे हैं वे
किस समय और कहाँ, यह कोई कठिन नहीं
षड्यंत्र रचना जनभावना को निकास देता है।
और मुझे भेद मिलता है
कि कौन चीज़ मुझे प्रेरणा देती है
उनके टटपुँजिया कार्यक्रम, लक्ष्य औ' स्वभाव
बतला देते हैं वह जो जानना चाहिए
और जान लेता हूँ जब तब प्रहार करता हूँ
मैं उन्हें रात में खदेड़ कर
सरगनों को गिरफ़्तार कर
सीने पर चाक़ू रख क़बुलवा लेता हूँ
क़बूल कर लेते हैं बेहिचक
फिर मैं सरगनों में दो एक को छोड़ कर
बाक़ी को गोली मार देता हूँ।
यह एक स्वतःचलित यंत्र है
जो बचे उन्हें छोड़ देता हूँ
जानते हुए कि वे
नए षड्यंत्रों का क्रम शुरू करेंगे
जनता से संपर्क का यह एक रूप है।
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 248)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : जान पार्कर
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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