हे सोलह बरखक तन्वंगी
बैसलि हियमे
नहि भेलह मुखर
चुपचाप किये
स्मृति रखने
मधुमय वसन्त केर गन्ध लेने
मदमत्त कोकिलक कूज मधुर
स्पर्श मलयकेर सुखद-सुखद
कुसुमक यौवनमय सरस हास
मालती केतकी केर विकास
सभटा ओहिना रखने हियमे
छेँ ताकि रहल प्रियतमक बाट।
अति आतुर विकसित नयन कोर
ताकय जनु चन्नाकेँ चकोर॥
दिनपर दिन
मासक मास बितल
तैयो नहि छूटल आशबन्ध
लाजेँ समटल हिय बीच सरस
स्वप्नक नहि टूटल मोह अन्ध।
हे तन्वंगी।
तजि लोकलाज
तोहर मुरारि रचि रहल रास
तोहर तन पीड़ा भरल, करुण
झामर अति
ओ किये सकत देखि
सौन्दर्य दर्शनक हेतु
मदान्धक नयन कोना उपयुक्त हैत।
आ शाश्वत नहि
क्षणभंगुर छविसँ
गेल चोराओल हृदय जकर
ओ की जानय प्रेमक पीड़ा
ओ 'चौर्य-प्रणय'मे रंग चारि गुन
भावि तजल
तोहर अति शाश्वत
मधुर राग
हे तन्वंगी।
ई मुखमण्डल किये अति उदास
लोचन जलमय
विक्षिप्त अधर
तेजह मृगतृष्णा केर बाट
कह 'महाकवे! करु क्षमादान
हम नख-शिखकेर नहि मृतक गात्र
श्रद्धाक पात्र
वसुधाक रत्नमय मूर्तरूप
करु प्रणय कक्षसँ मुक्त तन हमर
कर्मक्षेत्रमे कऽ प्रयाण
दी शक्ति स्वरूपा केर प्रमाण!
कोरक शिशु भऽ नहि अश्रुस्नात
मौलायत हमर
हमरे हरियर आँचरपर ओ
हँसि हँसि खेलायत
आ तखन अहाँ
नारीत्वक गौरव रवसँ मुखरित करब
अपन पदक-पदकेँ नित अभिनव, नूतन।
- पुस्तक : आगत क्षण ले (पृष्ठ 27)
- रचनाकार : नीरजा रेणु
- प्रकाशन : श्री शेखर झा
- संस्करण : 1997
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