मधुमय

madhumay

गंगाधर मेहेर

और अधिकगंगाधर मेहेर

    विश्व देखो मधुमय

    विश्व देखो मधुमय जीवन!

    मधुर झरण करेगा हरण

    तेरा पाप मरण भय, हे जीवन!

    जननी का नेह जाया का प्रणय

    बुध-बंधु संग सदालाप

    जनक आदर एक-एक झर

    मिटा देते ताप हे जीवन!

    नव-नव कर्म, नव-नव मर्म

    नव-नव ज्ञानपथ

    नव आलोक में दिखाते यह लोक

    मधु झर शत-शत, हे जीवन!

    मधुमय वन में मधुमय स्वन में,

    गाते मधुमय गीत,

    विहंगगण भर देते श्रवण

    मधु ढाल नित-नित रे जीवन!!

    दिन में दिनपति रात्रि में ऋक्षपति

    सहित कुमुद बंधु,

    नभचर गगन में अखिल भुवन में

    वितरण करें ज्योति मधुर, हे जीवन!

    मही महीधर में सरित सागर में

    सर, वन उपवन में

    देखो फूल कुल पल्लव कल्लोल में

    मधु भरे घर में, हे जीवन!

    विश्वनाथ की करुणा कंदरा

    मधुकर का जन्मस्थल

    देख झर प्रीति कर गति

    पाओगे कर जल, हे जीवन!

    फिर भी तू करुणानिधान के

    राज्य में करता है वास,

    बढ़ाकर उन श्रीचरणों में

    पाएगा, होगा निराश, हे जीवन!

    सर्प दंष्ट जन मुख में लवण

    दिये से कहता उसे माटी

    ज्ञान भ्रष्ट को मधु लगेगा स्वाद

    ज्ञान जड़ी पीना पीस, हे जीवन!

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 29)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : गंगाधर मेहेर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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