मछलियाँ गाएँगी एक दिन पंडुम गीत

machhliyan gayengi ek din panDum geet

पूनम वासम

पूनम वासम

मछलियाँ गाएँगी एक दिन पंडुम गीत

पूनम वासम

और अधिकपूनम वासम

     

    तुम्हें छूते हुए थरथरा रहे हैं मेरे हाथ
    कि कहीं किसी ताज़े ख़ून का धब्बा न लग जाए मेरी हथेलियों पर 
    सोचती हूँ तुम्हारी नींव रखी गई थी 
    तब भी क्या तुम इतनी ही डरावनी थी।

    अत्ता बताती है तुम्हारे आने की ख़बर से
    सारा गाँव हथेलियों पर तारे लिए घूम रहा था 
    उम्मीद की हज़ारों-हज़ार झालरें
    लटक रही थी घर की छानियों पर 
    सुअर की बलि संग देशी दारू का भोग
    लगाया गया था तुम्हें
    ख़ूब मान, जान के साथ आई थी तुम 
    तुम्हारे आने से तालपेरु का सीना 
    फूल कर और चौड़ा हो गया था।

    तुम आई तो अपने संग, सड़क, बिजली, पानी, अस्पताल, स्कूल, हाट, बाज़ार के नए मायने लेकर आई 

    गाँव अचानक शहर की पाठशाला में दाख़िल हो चुका था

    हित-अहित, अच्छा-बुरा, नफ़ा-नुक़सान, हिंसा-अहिंसा का पाठ पढ़कर
    होमवर्क भी करने लगा था पूरा गाँव

    किसी कल्पवृक्ष की भाँति 
    बाँहें पसारे तुम खड़ी रहती 
    और पूरा गाँव दुबककर सो जाता 
    तुम्हारी बाँहों के नरम गद्दे पर 
    एक निश्चिंतता भरी नींद 
    सूरज के उगने तक 

    सालों बाद लौटकर 
    जब आई हूँ तुमसे मिलने 
    तो देखती हूँ
    हज़ारों गुनाहों की साक्षी बन तालपेरु की रेतीली छाती पर 
    खंडहर-सी बिछी हो तुम

    साईं रेड्डी के ख़ून के छींटे तुम्हारी निष्ठुरता की कहानी कहते हैं

    तुम्हारी सुखद कहानियाँ 
    इतिहास के पन्नों पर 
    किसी फफोले की तरह जल रही हैं

    क्या कभी लौटकर आओगी तुम 
    तालपेरु नदी के ठंडे पानी का स्पर्श करने 

    बोलो कुछ तो बोलो 
    तुम्हारा यूँ निःशब्द होना 
    बासागुड़ा की आने वाली पीढ़ियों के मस्तिष्क में 
    गर्म ख़ून का बीज बोने जैसा है

    तुम ची, तुम चिल्लाओ, तुम रोओ, तुम माँगो इंसाफ़ 
    कि तुम्हारी चुप्पी तोड़ने से ही टूटेगा जंगल का चक्रव्यूह 

    तुम कुछ बोलो मेरे प्रिय पुल,
    कि तुम्हारी खनकती आवाज़ सुनकर 

    जंगल से हिरणों का झुंड पानी पीने ज़रूर आएगा
    उस दिन तालपेरु की सारी मछलियाँ तुम्हारे स्वागत में एक बार फिर पंडुम गीत गाएँगी

    तुम देखना,
    एक दिन तुम सजोगी फिर किसी नई दुल्हन की तरह।

    ***

    शब्दार्थ :

    *बासागुड़ा का पुल : एक गाँव को ज़िले से जोड़ने के लिए बनाया गया ख़ूबसूरत पुल, जिस पर कभी पूरा गाँव एकजुट होकर सुबह शाम गुज़ारा करता था। कहते हैं बहुत रौनक़ होती थी एक समय इस पुल पर, सलवाजुड़ुम के दौरान बासागुड़ा गाँव पूरी तरह ख़ाली हो गया था, अब धीरे-धीरे जीवन की कुछ उम्मीदें फिर से वहाँ पनपने लगी हैं; पर अब भी कुछ कहना मुश्किल है।
    *अत्ता : बुआ 
    *साईं रेड्डी : बीजापुर के चर्चित पत्रकार जिनकी उसी पुल पर कुल्हाड़ी मारकर हत्या कर दी गई थी।
    *तालपेरु : बैलाडीला से निकलकर बासागुड़ा होते हुए बहने वाली नदी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम वासम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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