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माय आ भगवती

maay aa bhagvati

रोमिशा

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रोमिशा

माय आ भगवती

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    दुर्गाक पहिल पूजासँ

    नवम दिन धरि

    रोज साँझुक पहरसँ पहिने

    तीन कमराक एकटा बन्द फ्लैटक

    तीन फिटिया बालकोनीमे बैसि

    माय रोज आधा घंटा लगा

    बनबय छथि माटिक दीप

    जीवनक संग्राममे

    लहूलुहान भेलाक बादो

    भगवती लेल बचौने छथि अप्पन स्नेह

    एकदम सुच्चा ओहि रूपमे

    जाहिमे हुनका भेल छलनि पहिल दीपक संज्ञान

    एहि दीप बनेबाक एखन घरिकेँ यात्रामे

    कतेक मनोभाव ढहि गेल

    कतेक अन्हार पसरि गेल

    कतेक शब्द भऽ गेल अलोपित शब्दकोशसँ

    जीवनक कतेक ऊष्मा

    बिला गेल धुआँ बनि हवा संग

    लुप्त भऽ गेल मोनक सुन्दरता

    नष्ट भऽ गेल सब कविता

    मुदा माय केने रहल

    अहर्निश अभियान जारी

    आत्मासँ अन्धकारक

    असंख्य स्मृति चिन्ह मेटबैत

    जोगबैत सब सम्बन्ध लेल स्नेह

    रोपने रहल अप्पन मोनमे

    स्नेहक हरसिंगारक गाछ

    जीवनक भोरक उजास भरैत अपनामे

    बचेने रहलीह प्रेम भगवतियो लेल ओहिना

    मुदा की कहियो बुझि सकतीह

    जे दीप जे भगवती लेल बनय छै

    कतेक काँच तन्नुक होइत अछि

    ओहि माटिमे स्त्रीक

    दम तोड़ैत असोथकित विश्वासक कतेक

    अस्फुट प्रश्न सना जाइत अछि

    भरि साल लेल छोड़ैत हुनका लग

    व्यर्थक धीरज जे भगवती

    स्त्रीक जीवनमे प्रकाश जरूर आनथिन

    एहि विश्वाससँ बचल रहैत छनि हुनकर

    घर-गृहस्थी, पति, संतान अरिजन-परिजन

    सब संग आसक्ति

    ओहिना जेना

    हरसिंगारक गाछपर

    पसरल रहै छै भूआ

    छितरायल रहै छै

    जमीनपर डारिसँ अलग फूल

    गाछ नितान्त एकाकीपनमे डोलैत

    भोगैत रहै छै वैह पीड़ा जे भोगय छथिन्ह भगवती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : रोमिशा
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2019

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