माँ, तुम इंदिरा गांधी क्यों नहीं हो?
माँ, तुम इंदिरा गांधी क्यों नहीं हो?
माँ, तुम मैली-कुचैली क्यों रहती हो?
माँ, तुम भैंसें पालती
गोबर थापती, दूध बिलौती ही मर जाओगी
माँ, तुम प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन जातीं!
माँ, तुम ज़िंदा क्यों हो?
माँ, तुम मर क्यों नहीं जातीं?
माँ, आज मैं भी देखता
पूरे देश को क़ौमी एकता मनाते
माँ, आज मैं भी कह सकता :
‘‘मेरी माँ मरी थी, तब सबकी माँ मर गई थी!’’
माँ, अगर छोटा भइया मर गया होता
माँ, अगर तुम भी विधवा होतीं
माँ, अगर साइकिल की जगह
मैं भी हवाई जहाज़ उड़ा रहा होता
तो माँ मेरा भी नाम राजीव गांधी होता
और मैं भी प्रधानमंत्री होता!
मैं कविताएँ नहीं लिखता
मैं क़लमघिस्सू नहीं बनता
मैं आकाश में उड़ता होता
मैं लोगों को धरती पर रेंगते देखता
मेरी दाढ़ी नहीं बढ़ी होती
मेरे सिर के उड़ते बाल
राजसी ठाठ का प्रतिबिंब लगते!
ऐसा क्यों था माँ?
इंदिरा गांधी ही इंदिरा गांधी क्यों थी?
इंदिरा गांधी क्यों नहीं थी माँ?
इंदिरा गांधी क्यों नहीं थापती थी गोबर?
इंदिरा गांधी क्यों नहीं रहती थी मैली?
इंदिरा गांधी क्यों नहीं पालती थी भैंसें?
माँ, तुम बताओ तो सही
मैं तोड़-फोड़ करता हूँ तो
तुम कर्फ़्यू क्यों नहीं लगातीं?
मैं भूखा रहता हूँ तो
तुम क्यों नहीं खातीं?
माँ, तुम इंदिरा गांधी होतीं
मैं तोड़-फोड़ करता
मैं भूखा रह जाता!
मैं तुमसे बग़ावत करता
और अपना हक़ माँगता
तो तुम कर्फ़्यू लगातीं
तुम पुलिस बल तैनात करतीं
और तो और
देश की सरहद पर तैनात सेना को ही
मेरे ख़िलाफ़ लगा देतीं!
तुम मेरे मरने पर भी
खा-पीकर सो जातीं
ऐसा होता माँ, तो कितना अच्छा होता माँ!
माँ, अगर तुम इंदिरा गांधी होतीं
तुम्हें रोज़ घर नहीं लीपना पड़ता
सलाम बजाने आते लोग
और और और और
और झाड़ू लगाते लोग और और और
पैसा लाते लोग और और और।
ऐसा क्यों नहीं होता माँ
कि तुम इमरजेंसी लगातीं
सरकार लंबी चलातीं
ख़ूब ख़ूब ख़ूब...
माँ, इंदिरा गांधी होतीं तुम
और तुम्हें मार दी जातीं गोलियाँ
और मेरे सारे दोस्त
ख़ून से धो देते
वे सारी सडक़ें, जो मज़लूमों से नफ़रत करती हैं
और अकेले आदमी को
चुटकी बजाते निगल जाती हैं!
माँ, तुम्हें मार दी जातीं गोलियाँ
तो कितना अच्छा होता माँ
प्रधानमंत्री बन जाता मैं!
राष्ट्र के नाम संबोधन में कहता मैं :
बरगद गिरने पर धरती हिलती है
मर जाती हैं कुछ चींटियाँ
कुचले जाते हैं कुछ टिड्डे
और ऐसी ही बहुत सारी बातें मसलन
जो हत्यारे थे
जो ग़ुंडे थे
जो रक्तबीज थे
जो दुश्मन थे देश के
जो लुटेरे थे
सम्मानित कर देता
माँ मैं इन सबको मंत्री बना देता!
माँ, तुम चुप क्यों हो?
कितना अच्छा होता माँ
अगर ऐसा होता माँ!
माँ, तुम्हीं आँधी में जलती लालटेन क्यों हो!
माँ, इंदिरा गांधी क्यों नहीं थी ऐसी?
माँ, तुम जवाब न दो तो न सही
मैं तो चुप हो जाऊँगा
मैं तो तुम्हारा राजा बेटा हूँ
मगर तब क्या कहोगी माँ
जब मेरी तरह सदियों बाद इतिहास पढ़कर बेटे कहेंगे :
माँ, तुम इंदिरा गांधी क्यों नहीं हो?
माँ, तुम इंदिरा गांधी क्यों नहीं हो?
माँ, तुम इंदिरा गांधी क्यों नहीं हो?
- रचनाकार : त्रिभुवन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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