दासत्व का बादशाह
गंधहीन, रसहीन
आकारहीन, विचारहीन,
रंगहीन, गतिविहीन,
सर्वत्र-व्याप्त, सहज-घुलनशील
सार्थक-अस्मिताविहीन,
कौन हूँ मैं?
यथास्थितिवाद का पोषक
जड़त्व का अथक शोधक,
अनिर्णय की स्थिति तक
जिज्ञासाओं का बोझ लिए,
पृच्छाओं का करता अविरल शर-संधान,
प्रगति को करता मरणासन्न
नीतियों को ओढ़ाता स्वर्णिम कफ़न,
निर्णयगत पक्षाघात का शिकार
नवीनता का सहज अवरोधक,
कौन हूँ मैं?
क्रूर, उदासीन, भावसिक्त,
शृंखलाबद्ध व्याधियों से लिप्त,
वैचारिक-द्वंद्वात्मक मवाद से आक्रांत,
श्रीविहीन कुंठाओं से होते
संकल्प भयाक्रांत,
तलाशता दफ़न होते
युवा-मूल्यों का पुनर्जीवन,
कौन हूँ मैं?
आमजन के लिए शून्य संवेदना
अधीनस्थों पर आहत शेर-सी गर्जना,
आकाओं के समक्ष सिद्धांतविहीन अर्चना,
चेतना के केंद्र में कुर्सी
वाणी में वक्र संभाषण,
शक्ति केंद्रों के समक्ष करता शीर्षासन,
कौन हूँ मैं?
भ्रष्टाचार के प्रजनन संवहन में
करता सहज योगदान,
नितांत ‘स्व’ की गुफा में सिमटा
लोक-हित का करता पिंडदान,
आभासी नृप-सा करता व्यवहार
निरीह जनों से सतत दुर्व्यवहार?
फ़ुटपाथों, झोंपड़ियों तक
स्वामी को सीमित कर,
करता क्षण-प्रतिक्षण तिरस्कार,
वातानुकूलित कमरों में मानसिक जुगाली,
और भरता अर्थहीन हुंकार,
ग़ुलाम वंश की अविछिन्न विरासत ढोता,
दासत्व का बादशाह!
लोकसेवक हूँ मैं!
- पुस्तक : शब्द! कुछ कहे-अनकहे से... (पृष्ठ 108)
- रचनाकार : एन.पी. सिंह
- प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
- संस्करण : 2019
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