जनता के लुटेरे

janta ke lutere

बलराम शुक्ल

बलराम शुक्ल

जनता के लुटेरे

बलराम शुक्ल

और अधिकबलराम शुक्ल

     

    एक

    धिक्कार करती है मेरी वाणी
    दुर्गतिग्रस्त भारतवर्ष के उन नेताओं की
    जिन्होंने लोगों के कठिनाई से कमाए हुए पैसे लूट लिए हैं
    जिन्होंने समाज में आर्थिक विषमता से बढ़ी हुई खाई 
    और अधिक चौड़ी कर दी है।  

    दो

    नेताओ,
    तुमने गाँवों को सभी प्रकार की सुविधाओं से वंचित कर दिया
    नौ-जवानों को उम्र भर के लिए
    महानगरों में नरक भोगने के लिए निर्वासित कर दिया
    बूढ़े माता-पिताओं के आसरे को निर्दयतापूर्वक छीन लिया
    ज़रा बताओ
    तुम्हारे अतिरिक्त अब और किसे दोष दिया जाए?

    तीन

    तुमने लोगों को
    केवल अन्न की भुखमरी से ही नहीं
    बल्कि सुशिक्षा की कमी से भी अचेत कर दिया
    जिससे वे शारीरिक और मानसिक
    दोनों प्रकार के सामर्थ्य से विहीन हो जाएँ
    तुम्हें अपदस्थ न कर दें
    जैसे ऋषियों ने दुष्ट वेन को
    अपने हुंकार से अपदस्थ कर दिया था।

    चार

    क़सम खाकर कहता हूँ मैं
    नौजवानों के पिचके हुए गालों में पड़े गड्ढों के घने अँधेरों की
    कुपोषित युवतियों की सूखती छातियों की
    लाचार बूढ़ों के काँपते हाथों की
    तुँदीले नेता,
    तुम्हारे अलावा और कोई भी अपराधी नहीं है।

    पाँच

    हमारी रातें इस उम्मीद में जगते हुए गुज़रती हैं
    कि कल सुबह देस में सब कुछ ठीक हो जाएगा
    लेकिन दिन होने पर फिर से वही पशुओं की-सी दशा अपरिवर्तित रहती है
    तुम उस राहु की तरह हो जिसके नाते
    हमारे दिन और रात सब पर ग्रहण लग गए हैं।

    छह

    अच्छा, लोगों के पैसों से तुम सारी दुनिया में सैर करते हो
    तुम्हीं बताओ, क्या कोई ऐसा देस तुमने देखा है
    जहाँ सारी संपत्ति रहने के बावजूद
    मानवता कीड़ों की तरह इस प्रकार अपमान सहती हो?

    सात

    तुमने बच्चों से उनका बचपन,
    जवानों से उनकी जवानी,
    माँओं से उनके बेटे
    और बाप से उनका आराम, सब छीन लिए हैं
    हे विक्षिप्तचित्त, तुमने समाज में सारी व्यवस्थाओं को
    विशृंखलित कर दिया है।

    आठ

    इस भूमि के लिए माता जैसा झूठा संबोधन करके
    वारांगना की तरह उसका घर्षण और शोषण करते हो
    नरकपुरी का राजा यमराज देर तक विचार करता रह जाता है
    कि वह मलराशि की तरह तुम्हें
    नरक के किस कोने में डाले?

    नौ

    नित नए-नए झूठ बोलकर
    तुम लोगों को लुभाते हो
    और फिर निर्लज्ज की तरह उन्हें लूटने में लगे रहते हो
    हे नीच पुरुष,
    तुझ जैसे झूठे व्यक्ति पर विश्वास करके
    भारत मानो आत्महत्या पर उतारू हो गया है। 

    दस

    तुम लोगों के पैसे लूटकर
    आर्थिक अशुचिता फैलाते हो
    फिर उसे छिपाने के लिए
    अपने सारे सरकारी महकमे का इस्तेमाल करते हो
    भ्रष्टाचार के कलंक को झुठलाने में
    ज़मीन आसमान एक कर देते हो
    तुम्हें धिक्कार है
    तुम अपने पाप से सारे समाज को प्रदूषित करते हो।

    ग्यारह

    मुझे बड़ा कष्ट यह है
    छंदों के बीच तिलक की तरह सुंदर
    मेरी इस वसंततिलका को व्यथित होकर
    तुम्हारी निंदा करनी पड़ रही है
    यह दुर्घटना ऐसे ही है जैसे
    सर्वाङ्गसुंदर कोई नई युवती
    दुर्भाग्यवश किसी नीच लफंगे के हाथ पड़ गई हो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बलराम शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए