लाल पंखों वाली चिड़िया

lal pankhon wali chiDiya

शील

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लाल पंखों वाली चिड़िया

शील

और अधिकशील

    काम-दाम में बराबरी के लिए,

    आदमी को आदमी के लिए,

    एक अदद सूरज, एक अदद—

    युद्ध की बर्ख़ास्तगी का ऐलान—

    करना ही होगा।

    रोकनी होगी पेंटागन की—

    ढोलक बजाती साज़िशों की करतूत।

    तोड़नी होगी—

    दोहरे, दोगले चरित्रों की रीढ़।

    हमारी कविता—

    आदमी के रक्त की तरह लाल,

    रक्त की गति की तरह आंदोलित,

    हमारी कविता की दुनिया,

    आदमीयत के एहसास की विश्वास की दुनिया है।

    यह दुनिया, यह साँचे में ढली कायनात—

    आदमी के हाथों की क़ूवत का ख़ूबसूरत सबूत है।

    हमारे लिए दुनिया का कोई देश-विदेश नहीं।

    रूप-रंग, वर्ण, धर्म के पास रोटी नहीं होती।

    रोटी का अर्थतंत्र—

    राष्ट्रों की सीमाएँ तोड़ चुका है।

    काम-दाम में बराबरी के लिए—

    शोषणमुक्त मानवता के लिए,

    विश्व सर्वहारा क्रांति उद्दीपित हो रही है।

    देश-देश में—

    रोटी का अर्थतंत्र टकरा रहा है।

    लाल पंखों वाली चिड़िया—

    पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष का—

    चक्कर लगा रही है।

    साहित्य की कल्पना,

    विज्ञान का आलोक—

    देश-देश में—

    रोटी का अर्थतंत्र टकरा रहा है।

    लाल पंखों वाली चिड़िया—

    पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष का—

    चक्कर लगा रही है।

    साहित्य की कल्पना,

    विज्ञान का आलोक—

    सत्य—

    रोजेनवर्ग दंपति की मेधा लाल पंखों वाली चिड़िया,

    आदमी की अंतहीन विकास कथा,

    मिट्टी का पहिया,

    मिट्टी का दिया,

    मिट्टी का चाक,

    प्रकाशन और गति का विज्ञान,

    चाँद में शिशु जनमने का मुहूर्त,

    आकस्मिक नहीं।

    आदमी के मस्तिष्क और पौरुष की उपलब्धि,

    धरती की कोख में जन्मी सभ्यता की आत्मा,

    बीसवीं सदी की प्रासंगिक चेतना,

    रोज़न दंपति की मेधा—

    लाल पंखों वाली चिड़िया।

    धरती, आकाश, अंतरिक्ष का गठजोड़ करती,

    युद्ध, शोषण के विनाश के लिए।

    मानव जाति की सृजन आकांक्षाओं के लिए—

    द्वार खोलती,

    देश-देश में चक्कर लगाती,

    लुवलिन के बूचड़ख़ानों की हक़ीक़त,

    मुर्दों के म्यूजियम,

    आदमी की खाल में आदमी के भूसा भरे मॉडल,

    नागासाकी... हिरोशिमा की—

    संहार कथा के दस्तावेज़।

    जिनके हर पेज पर लिखा है—

    पीपुल्सवार रोकने का चमत्कार।

    माथा घूमने लगता है।

    स्वयं से पूछ बैठता हूँ—

    कहाँ है वह आदमी?

    जिसने मानवजाति के विकास का दर्शन रचा।

    क्या मानवता महज़ एक आर्ष वाक्य है—

    एक शब्द है?

    उसका बोध, विभाजित है,

    विलासिता और पीड़ा के—

    दो संसारों में?

    एक आवाज़ उठती है—

    बर्लिन का पतन।

    मानवता के शत्रु-फ़ाशिस्ट,

    हिटलर-गोविल्स विषपान कर रहे हैं।

    और... मैं...

    दुनिया की भीड़ में खड़ा तालियाँ बजा रहा हूँ।

    एकाएक चौंक पड़ता हूँ...

    अपने ही गरेबान में हाथ डालकर देखता हूँ।

    भूख से बिलबिलाता बंगाल।

    अकाल-दुर्भिक्ष के विधाता—

    सेठ-साहूकारों की बढ़ी-बढ़ी तोंदें,

    रिरियाते हुए बच्चे,

    दम तोड़ती मनुष्यता,

    लाशों पर मँडलाते गीध, कौए, स्यार,

    शरणार्थियों के हजूम।

    देश भोग रहा था—

    युद्ध की विभिषिका में अथावों का आतंक।

    पूँजीवादी काल-क्रांति।

    स्वार्थ और भय के—

    सन्निहित मंसूबे छलके,

    सूरज निकले, सूर्योदय का देश जापान,

    एटमिक धुएँ के—

    काले बादलों में डूब गया।

    द्वितीय युद्ध की समाप्ति,

    आधी दुनिया लाल—

    आधी काली रह गई।

    काली दुनिया का काला जादू,

    स्वर्ण के लिए शोषण,

    शोषण के लिए युद्ध,

    युद्ध के लिए शीतयुद्ध,

    युद्धोन्मादी प्रतिस्पर्धा की—

    कमाई से मोटे हो रहे—

    काली दुनिया के धन-लोलुप,

    प्रतिगामी,

    बुर्जुआ, वणिक, सामंत,

    ग़ैर साम्यवादी दुनिया के—

    दोहरे, दोगले चरित्रों के लोग।

    जल, थल, नभ-भेदी—

    आदमी की मेहनत से भयभीत,

    आदमी का गोश्त खाने के लिए—

    अमरीका से बड़े-बड़े जबड़े—

    बड़े-बड़े दाँत ख़रीद रहे हैं।

    भूख, बेकारी, भ्रष्टाचार, महँगाई—

    अपराधों की बाढ़ में—अपनी-अपनी पूँजी सेंक रहे हैं।

    अपने ही देश में—

    दो नंबर का धन एक नंबर का हो गया।

    यह आश्चर्य नहीं?

    एक भुक्तभोगी यथार्थ है।

    दोमुखी अतीत,

    अतीत की पीठ में छुपा,

    भस्मासुरी आयुधों का ज़ख़ीरा।

    और अतीत की छाती पर बैठे—

    वर्तमान के सिर पर...

    श्रम का लाल सूरज गजर बजा रहा है।

    नई दुनिया के मेमारों के लिए—

    साम्यवाद—

    रूस-चीन में क़ैद,

    तिजोरियों में बंद,

    या पुस्ताकालयों में सजी...

    किताब नहीं।

    ज़िंदगी की ज़रूरत है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लाल पंखों वाली चिड़िया (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : शील
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1992

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