क्या करें?

kya karen?

बालमणि अम्मा

बालमणि अम्मा

क्या करें?

बालमणि अम्मा

और अधिकबालमणि अम्मा

    शांति की खोज में अति अशांति अनुभव कराने वाले, शाश्वतावस्था

    के अंशों के समूह! तुमको नमस्कार!

    प्रत्येक मुख में अनुभूति की वर्ण-प्रचुरिमा फैलाने वाले प्रेम-प्रकाश!

    तुमको नमस्कार!

    आत्मैक्य में विलीन होकर धन्यता अनुभव करता हुआ कवि जब सभा

    के सामने खड़ा होता है तब कवि हृदय गाने लगता है।

    मधुर, उदार वाणी, चिरमैत्री से परस्पर मिल जाने वाले हाथ, और

    प्रिय वस्तु को खोजकर पंख लगाए उड़ने वाले हृदय की प्रतीति देते हुए

    वे सूक्ष्म दृष्टि-निक्षेप!

    क्या-क्या कहें? स्वर्ग छोड़कर आए आत्मा के लिए जो-जो अति

    मूल्यवान है, वह सब यहाँ प्रस्तुत है।

    इतना ही नहीं, इन सभों में निगूढ़ और भी अनेक अद्भुततम सौंदर्य-

    विकास कवि को दिखलाई पड़ते हैं।

    इस विश्व को नया बनाने के लिए, समुन्नत करने के लिए व्याकुल

    कर्मोदारता (उदार प्रवृत्ति-पथ) की मृदुल भाव-पंक्तियों,

    लोगों के अपवाद-प्रहारों से छिन्न-भिन्न, अभिमान से मूक हृदयों

    के आरक्त प्रकाश,

    प्रफुल्लित होने के लिए हो अथवा वृथा सूख जाने के लिए, स्वैर भाव

    से अंकुरित होकर बढ़ने वाली मुग्ध-तारुण्य प्रतीक्षाओं,

    आशा की चिता से उत्पन्न होकर निर्विकार अवस्था की ओर चंचल

    गति से उड़ने वाले अर्चना-धूम्र,

    प्रदोष और प्रभात जिनको मोहन-क्रांति में निमज्जन कराते हैं

    उन सहन-सहस्र विश्वों के सौंदर्य-सार-संकलन से निर्मित अद्भुत वस्तुओं

    को ही कवि मानव-हृदय के रूप में जानता है।

    और जब वह भीषण उद्वेग तथा अनन्त आनंद आवेश से भरकर

    अंतरावेग से फूट-फूट कर विकसित होता है तब कवि उसके मधुरूपी

    अमृत का आस्वादन करता है।

    उस महान् सभा में उत्कंठा फैल जाती है—“नित्य मंगल प्राप्त होने

    के लिए हम क्या करें?”

    चंडवात-जैसी आह वहाँ हिलोरे लेने लगती है—” हमने कुछ नहीं

    किया, हमने कुछ नहीं किया!”

    उस आकाश के नीचे, जिसमें श्वेत मेघवृंद हँस-हँसकर नर्तन करते

    हैं और उस भूमि के ऊपर, जिसमें बाँस स्वप्न देख, विह्वल होकर हाय भरते

    हैं, मौन रहने वाला कवि एक चिरंतन गान सुनता है—” हम क्या करें?”

    सबसे बड़ी शक्ति भी आख़िर क्या कर सकती है—

    इसके सिवा कि, अनादि अनन्त पीड़ा को बाहर से अंदर की ओर

    ठेल दे! सुख बढ़ाने के लिए आपस में हृदय खोलकर प्रेम करने के

    अतिरिक्त हम क्या कर सकते हैं?

    प्रेम विश्वात्मा परमेश्वर का हृद्रक्त है! उसके प्रवाहित होने के लिए

    बनाई गई शिराएँ हैं हम मानव।

    जब वह पावन रक्त हम में बहता है, तब जीवन की मलिनता कहीं

    जम सकती है?

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 507)
    • रचनाकार : बालमणि अम्मा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए