कुछ साल पहले

kuch saal pahle

सुशीलनाथ कुमार

सुशीलनाथ कुमार

कुछ साल पहले

सुशीलनाथ कुमार

और अधिकसुशीलनाथ कुमार

    कुछ साल पहले तक

    मेरे गाँव के पास एक नदी बहती थी

    अब धान के खेतों में

    किसी साँप की केंचुल की तरह

    सूखकर अकड़ गई है

    स्थानीय अख़बार में कभी-कभी आती है

    सूखी हुई नदी के साथ

    नहर की खुदाई की ख़बर

    अभी कुछ वर्ष हुए

    गंगा के पुनरोद्धार के लिए

    दिल्ली में एक नया मंत्रालय बनाया गया

    पर देश की सैकड़ों नदियों की तरह

    गंगा का उद्धार अटका पड़ा है

    रायसीना की किसी चहारदीवारी में

    यमुना से उड़कर आई रेत में

    इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में दर्ज है

    नदियों ने ही आबाद की हैं

    सारी इंसानी सभ्यताएँ

    कोई भी शहर आबाद नहीं हुआ

    नहर के किनारे

    एक सुनियोजित ढंग से

    नहरें चूस रही हैं नदियों का नीलाभ रक्त

    कर रही हैं आर्द्र तुरपाई

    ज़मीन के उन टुकड़ों में शुष्क दरारों की

    जो नदी के बहाव से दूर हो गए

    कोई भी नहर नहीं निकली

    किसी झील या हिमखंड से

    ही कोई नदी सागर से मिलने

    निकलती है किसी नहर से

    खेतों का गला तर करने के लिए

    नहर को नहीं तय करने पड़ते

    ऊबड़खाबड़ और अनजान रास्ते

    नहीं काटने पड़ते पर्वत और पहाड़

    ही गुज़रना पड़ता है

    अँधेरी कंदराओं और सुनसान खाइयों से

    मैंने किसी नहर को नहीं देखा

    बर्फ़ की चादर में जमी हुई

    नदी कभी-कभी भटकर गिर जाती है

    सैकड़ों फ़ीट गहरी घाटी में

    इंसान गणित में काफ़ी कमज़ोर हैं

    हमें नहीं आता औसत जैसा सामान्य फ़ॉर्मूला

    अरबों टन मलिनता भरकर

    हमने नदी का दम घोंट दिया

    अब वह मेरे गाँव से थोड़ी दूर

    धान के खेतों में लेटी

    मौत का इंतज़ार कर रही है

    इतिहास की किताबों में उल्लेख है

    लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का

    कुछ दशकों से वहाँ एक नहर बहती है

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुशीलनाथ कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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