कुछ भी वैसा नहीं

kuch bhi waisa nahin

उमा शंकर चौधरी

उमा शंकर चौधरी

कुछ भी वैसा नहीं

उमा शंकर चौधरी

और अधिकउमा शंकर चौधरी

    अब जब तक तुम लौटकर आओगे

    कुछ भी वैसा नहीं रहेगा

    यह सुनहरी सुबह और ही यह गोधूलि शाम

    यह फूलों का चटक रंग

    चिड़ियों की यह क़तार

    और ही यह पत्तों की सरसराहट

    अब जब तक तुम लौटकर आओगे

    रात का अँधेरा और काला हो चुका रहेगा

    बारिश की बूँदें और छोटी हो चुकी होंगी

    हमारे फेफेड़े में जगह लगभग ख़त्म हो चुकी रहेगी

    जब तुम गए थे तब हमने सोचा था

    कि अगली सर्दी ख़त्म हो चुका होगा हमारा बुरा वक़्त

    राहत में होंगी हरदम तेज़ चलने वाली हमारी साँसें

    लेकिन अगली क्या उसकी अगली और उसकी अगली सर्दी भी चली गई

    और ठीक सेमल के पेड़ की तरह बढ़ता ही चला गया हमारा दुख

    अबकि जब तुम आओगे तो

    तुम्हें और उदास दिखेंगे यहाँ हवा, फूल, मिट्टी, सूरज

    और सबसे अधिक बच्चे

    अबकि जब तुम आओगे तो चाँद पर और गहरा दिखेगा धब्बा

    मैं जानता हूँ कि तुम आओगे देखोगे इन उदास मौसमों को

    और तुम जान लोगे हमारे उदास होने का ठीक ठीक कारण।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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