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खुसबू की गठरी

khusbu ki gathri

भारतेंदु मिश्र

भारतेंदु मिश्र

खुसबू की गठरी

भारतेंदु मिश्र

और अधिकभारतेंदु मिश्र

    सोने मा सुगंध बटुरी है

    अमलतास फूला है सब तन खुसबू बिथरी है।

    सिरहिट केरि लोनाई द्याखौ भैया जिउ भरिके

    कहाँ मिली या मुहँ देखराई मौज बसंती की

    लौटी है बरात सोने के झुमका झूलि रहे

    नई बहुरिया टीका पहिरे घर मा उतरी है।

    बरै लाग बैसाख कि अम्बिया टपकै वाली होई

    सुआ चिरैया कोइली सबकी धुनि मतवाली होई

    बगियन के वुइ सपन सलोने समुहे खड़े भये

    डियरपार्क मा अमलतास की छाँह सुनहरी है।

    खेत गाँव सबु जाने कब का सपन हुइ गवा है

    कंकरीट का जंगल गर्मी धुँआ रहि गवा है।

    दिल्ली मा सब हैं अपनै जस, अपन कोऊ है

    सेल्फी मा चौचक चेहरा, घरु कमरी-कथरी है।

    तनिक देर सहिताय लेव गर्मी मा भैया

    चलै बतकही और उड़े ख्वाबन की कनकैया

    मौका पायेव अमलतास ते मिलिकै आयेव

    पँखुरी पँखुरी मा बाँधी खुसबू की गठरी है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भाखा की गठरी (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : भारतेन्दु मिश्र
    • प्रकाशन : परिकल्पना, दिल्ली
    • संस्करण : 2025

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