ख़ूबसूरत औरतें

khubsurat aurten

अशोक कुमार

अशोक कुमार

ख़ूबसूरत औरतें

अशोक कुमार

और अधिकअशोक कुमार

    वे दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरतें थीं

    जो पहाड़-सी ज़िंदगी को

    लाँघती, फलाँगती हुई

    किसी भी आँगन में देर तक बतियातीं

    ज़ोर-ज़ोर से ठठियातीं

    और उदासियों को दूर धकेल देतीं।

    उन्होंने छुपकर प्रेम किया

    और पनिहारों, घसनियों में गुनगुनाते हुए

    विरह के सबसे मीठे गीत गाए।

    उन्होंने तमाम मुश्किलों को

    पुआल की तरह बटोरा

    और उस पर बैठकर विश्राम कर लिया।

    वे जब दुःखी हुईं तो खेतों में उगे झाड़-झंखाडों को

    दरातियों से काँट-छाँट आईं।

    उनके हिस्से में सबसे आख़िरी रोटी

    सबके बाद में कपड़ा

    और सबसे कम ख़ुशियाँ आईं।

    उन्होंने गहने बेच बेटों को शहर भेजा

    और जंगल के सबसे ख़ूबसूरत फूल चुनकर

    अपने जूडों में खोंस लिए।

    उन्होंने बेटी की विदाई पर बचाए आँसुओं को

    बेटों के परदेस जाने पर बहाया।

    उन्होंने नहीं ख़र्चे बेटों के दिए पैसे

    उन्हें छुपाकर रखा

    कपड़ों की तहों के बीच

    और पीहर आई बेटी के हाथ में रख दिए।

    मेरे सपनों में आती हैं वे सारी औरतें

    जो मेरी माँएँ तो नहीं थीं

    किंतु एक वक़्त के बाद,

    मेरी माँ का चेहरा

    उनसे मिलने लग गया है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अशोक कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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