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खोई-पाई चीज़ों के दफ़्तर में एक निवेदन

khoi pai chizon ke daftar mein ek nivedan

अनुवाद : हरिमोहन शर्मा

वीस्वावा षिम्बोर्स्का

वीस्वावा षिम्बोर्स्का

खोई-पाई चीज़ों के दफ़्तर में एक निवेदन

वीस्वावा षिम्बोर्स्का

और अधिकवीस्वावा षिम्बोर्स्का

    दक्षिण से उत्तर जाते हुए

    मैंने खो दी हैं कुछ देवियाँ

    तो पूरब से पश्चिम जाते हुए

    बहुत से देवता

    समाप्त हो गए हमेशा के लिए कुछ तारे

    अलग-थलग पड़ गया है : स्वर्ग

    समुद्र में समा गया मेरे लिए एक टापू फिर दूसरा

    पता नहीं ठीक से कहाँ छोड़ दिया मैंने अपना पंजा

    कौन पहन रहा है मेरी खाल

    कौन रहता है मेरे खोल में

    मेरे सहोदर जब मैं ज़मीन पर आई रेंग कर

    छोटी-मोटी हड्डियाँ ही हर्षोल्लास मना सकी मुझमें

    बहुत कोशिश के बावजूद गँवा दी रीढ़ की हड्डी और पैर

    कई बार उड़ गए होश।

    बहुत दिनों पहले बंद कर लिया अपना तीसरा नेत्र :

    अब इन सब की ओर से

    गई उदासी मेरे उड़ान पंखों पर

    और लापरवाही डालियों पर

    खो गई, लुप्त हो गई, बिखर गयी स्वर्गिक हवाओं में।

    कितनी कम रह गई हूँ मैं / आश्चर्य है मुझे :

    मानव, एक वचन, कुछ समय के लिए तो सिर्फ़—

    आदमी और औरत

    खो गया है जिसका एक छाता

    कल ट्राम के भीतर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 181)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : वीस्वावा षिम्बोर्स्का
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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