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खटमल

khatmal

नागार्जुन

अन्य

अन्य

नागार्जुन

खटमल

नागार्जुन

और अधिकनागार्जुन

    उमड़ उमड़ आए खटमल

    मैं जागा सारी रात

    बिस्तर क्या था, जंगल था,

    मैं भागा सारी रात

    ख़ून खींचता रहा रगों से

    आगा सारी रात

    अस्पताल में यों हम बैठे

    नागा सारी रात

    अभी-अभी मारा, फिर कैसे

    निकला यह पाताल से

    तरुण गुरिल्ला मात खा गए

    शिशु खटमल की चाल से

    रात्रि-जागरण-दिन की निद्रा

    चिपके मेरे भाल से

    यम की नानी डरती होगी

    खटमल के कंकाल से

    निकल आया फिर कहाँ से

    खटमलों का यह हजूम

    मैं ज़रा जाता हूँ बाहर

    मैं ज़रा आता हूँ घूम

    रक्त बीजों की फ़सल को

    मौत क्या सकती है चूम

    मगर बाहर मच्छरों ने भी मचा रक्खी है धूम

    हम भी भागे, छिपकलियाँ भी भागीं सारी रात

    हम भी जागे, छिपकलियाँ भी जागीं सारी रात

    जीत गई छिपकलियाँ, लेकिन हमने मानी हार

    अपने बूते सौ पचास भी मच्छर सके मार

    जीत गईं छिपकलियाँ, लेकिन हमने मानी हार

    अपने बूते सौ पचास भी खटमल सके मार

    स्रोत :
    • पुस्तक : नागार्जुन रचना संचयन (पृष्ठ 110)
    • संपादक : राजेश जोशी
    • रचनाकार : नागार्जुन
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2017

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