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केदारनाथ सिंह के लिए

kedaranath sinh ke liye

मानसी मिश्र

अन्य

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मानसी मिश्र

केदारनाथ सिंह के लिए

मानसी मिश्र

और अधिकमानसी मिश्र

    प्रिय कवि,

    जब तुम बता रहे थे

    हिंदी की सबसे ख़ौफ़नाक क्रिया के बारे में

    तब मुझे याद आया

    ‘जाना’ से ज़्यादा ख़ौफ़नाक है वह स्थिति

    जिससे जाना पड़ता है

    जैसे प्रेमिकाओं को जाना पड़ा ससुराल

    इंसानों को जाना पड़ा शहर

    रोटी की खोज में

    बदलना पड़ा मज़दूरों में

    फिर वापस गाँव

    मनुष्यता के अवशेषों पर चलते हुए

    देखो कवि

    उन अवशेषों पर ही पड़ी हैं वे रोटियाँ

    जिसकी खोज में शहर गए थे

    रोज़ स्थितियाँ बनती हैं

    जो बेसब्र हो जाते हैं

    वो चले जाते हैं

    अपनी बेसब्री को बिछाकर सोते हैं

    और व्यवस्था सिर को कुचलती हुई

    धड़धडा़ती निकल जाती है

    समाचार का एक छोटा कोना

    टीवी की पतली पट्टी पर चलती एक ख़बर

    मन के पटल पर पल भर भी नहीं ठहरती

    फिर भी कवि

    लोग जाते हैं

    और कोई भी यह नहीं पूछता क्यों जाना पड़ा?

    स्रोत :
    • रचनाकार : मानसी मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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