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म्वार राजा

वइ दिन लदिगे

जब कहा जाति रहइ—

भूषन बिन सोहहीं

कविता, बनिता, मित्त

हमइ तुमार गहना गुरिया चही

दुइ लाख की चुरिया चही

भाव भीनी पुरिया चही

झूठा देखाउ चही

देस बदि ताउ चही

हमइ तुमार धेला चही

जुगन के जूठे

सुतिया, टड़िया

छन्नी, पछेला चही

खाले ते ऊपर लगु

चाँदी की चमक चही

सोने की दमक चही

रस की गमक चही

सिर्फ ईंगुरु बंदन चही

सतिभाउ का चंदन चही

नमक मिर्च लागि चटपटी

बात चही

सुनहरी रात चही

जेहिमा चन्दा की चमक होइ

बेला की गमक होइ

बादरु भुरवा होइ

मंद मंद पुरवा होइ

बातन का बनाउ चही

भीतर का गहिर गहिर

भाउ चही, चाउ चही

जेहिमा हम बूड़ि सकी

बूड़ि-बड़ि उतराइ सकी

बन्द कोठरी कै

भाषण बाजी चही,

बयारि ताजी चही

बुद्धि वैभव की चालु चही

हिरदय क्यार हालु चही

पाछिल जुग मात करउ

आगे कै बात करउ

नाटक चही

मन की हिल्वार चही

मन मा मनु मिलि जाइ

तौ जिउ खिलि जाइ

सिंगारु सादा चही

मुलु पक्का इरादा चही

पुरानि रीति छोड़ि देउ

नइ रीति नीति चही

अटपटा ढंगु चही

साफ सुथरा रंगु चही

अब हम साँचे मा ढलब

स्वतन्त्र होइ चलब

स्रोत :
  • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 61)
  • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
  • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
  • संस्करण : 1991

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