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कविता

kavita

गंगेश गुंजन

अन्य

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और अधिकगंगेश गुंजन

    हमर कविता गड़य नहि,

    सोहराबय, हमर कविता

    ताहि भूमि पर आबय।

    हमर स्वर केर ओज भय उपजाबय

    युग केँ चाही जे सस्नेह समझाबय।

    हमर कविता ककरो नहि बौआबय

    थाकल हारल मनक शिशु परतारय।

    जरथि नहि

    हमर कविता पढ़ि-पढ़ि

    नहि मिझाइथ मुदा, तेहन इजोत बचाबय।

    उदास नहि होअय,

    हमर सुननाहर, हत आशा सँ उबरि

    हमर गीत गाबय।

    भने हो सुन्दर सन फुलवाड़ी

    मुदा अन्हरियाक घोखा सहिये सही बुझाबय।

    हमर कविताक संसार बृहत

    बड़का टा हो, जे सबहक मन आओर ठोर

    पर जा बैसय

    परि रहल लोकक दुखक जे

    धवल किरण, शब्दक से संदेश

    हमर सौंसे पहुँचाबय।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आरम्भ (पृष्ठ 15)
    • संपादक : राज मोहन झा
    • रचनाकार : गंगेश गुंजन
    • प्रकाशन : आरम्भ
    • संस्करण : 1997

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