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कवि

kavi

कवि होना ऐसा है जैसे

जीवन के प्रति निष्ठा रखना हर मुश्किल में,

मानो ख़ुद उधेड़कर अपनी कोमल चमड़ी,

देना लहू उँडेल अन्य लोगों के दिल में।

कवि गाता स्वछंद वायुमंडल का गायन,

ताकि लगे वह विस्तृत व्यापक,

होश नहीं होता कोयल को अपने दु:ख, अपनी पीड़ा का,

वह सदैव गाती है अनथक।

रटता है तोता ग़ुलाम-सा गीत किसी का,

बेचारा टुनटुना खिलौना-सा लगता है तब वह उस पल,

विश्व चाहता गीत तुम्हारे अपने स्वर में,

फिर चाहे मेंढक-जैसी टर-टर हो केवल।

वर्जित किया मुहम्मद साहब

ने क़ुरान में मदिरा पीना,

किंतु जाम पर जाम पिए जाता है कविवर,

नहीं वर्जना में सीखा है उसने जीना।

अगर कभी कवि पाएगा अपनी प्रेयसि को

अन्य पुरुष की बाँहों में, रँगराती में,

जीवनदायक जाम ढाल आरक्षित बनकर,

छुरा नहीं भोंकेगा वह उसकी छाती में।

एक दहकता भाव लिए अति साहसपूर्वक,

बजा सीटियाँ चला जाएगा यही सोचता वह अपने घर :

“क्या होगा यदि आवारा की तरह मरा मैं,

ऐसा भी होता आया है इस धरती पर।”

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 113)
  • संपादक : नामवर सिंह
  • रचनाकार : सर्गेई येसेनिन
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  • संस्करण : 1978

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