विद्वानों के लिए

widwanon ke liye

जी. एस. शिवरुद्रप्पा

जी. एस. शिवरुद्रप्पा

विद्वानों के लिए

जी. एस. शिवरुद्रप्पा

और अधिकजी. एस. शिवरुद्रप्पा

    मुझे रोना आता है विद्वानो, आपके

    इस लेखनकला को जब भी देखता हूँ

    कैसी ऑक्टोपस पकड़ है आपकी! भरा-पूरा

    शरीर-मांस रक्त सब कुछ चूसकर

    सिर्फ़ हड्डियों को ही बचाकर पट्टी डाला है

    कवि को आसानी से पचाकर!

    फूल, पत्ते, अंकुर तना—इनकी याद ही नहीं;

    आपके खांडवदहन—आर्भट में पड़े हुए

    राख के ढेर को देखकर उसके अंदर की आत्मा को

    मैं रोया हूँ विद्वानों, इस मसान पर्व के किनारे

    देखिए खड़े होकर

    आपके व्याकरण के चिमटे में इन मूल रूपों का

    लोहे को ऊपर उठाकर, टकसाल के पत्थर पर रखकर

    हथौड़े की मार के लिए

    मैं काँप उठा हूँ विद्वानों

    सदा के लिए आपके धीरज का क्या कहना!

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरा दीया और अन्य कविताएँ (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : जी. एस. शिवरुद्रप्पा
    • प्रकाशन : राजमंगल प्रकाशन
    • संस्करण : 2022

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