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काम्पो दि फ़्योरी

kampo di fyori

चेस्लाव मीलोष

चेस्लाव मीलोष

काम्पो दि फ़्योरी

चेस्लाव मीलोष

और अधिकचेस्लाव मीलोष

    रोम में काम्पो दि फ़्योरी पर

    जैतून और नीबू की टोकरियाँ

    अँगूरी छिड़की हुई बटियाँ

    फूलों की किरचें।

    गुलाबी समुद्री खाद्य

    बेचने वाले मेज़ों पर डालते हैं

    मुट्ठी भर काले अंगूर

    जो गिरते हैं आडुओं की कोमल त्वचा पर।

    यहाँ इसी चौक पर

    ज्योर्दानो ब्रूनो जलाया गया था,

    जल्लाद ने चिता की आग जलाई

    जिज्ञासु भीड़ से घिरे हुए।

    और जैसे ही लपटें शांत हुई

    मधुशालाएँ फिर से खचाखच भरी हुई

    जैतून और नीबू की टोकरियाँ

    बेचने वाले अपने सिरों पर लिए हुए।

    मैंने याद किया काम्पो दि फ़्योरी को

    वार्षावा में चरख हिंडोला के बग़ल में,

    एक सुखद वसंती शाम को

    ज़िंदादिल संगीत की धुनें सुनते हुए।

    यहूदी बस्ती की, दीवार के ऊपर धमाके

    ज़िंदादिल धुन द्वारा सुन्न किए गए

    और जोड़े उड़े

    ऊपर साफ़ आकाश में।

    जब-तब जलते मकानों से हवा

    ले आई काली पतंगे,

    उन्होंने हवा में चिनगारियाँ लोक लीं

    जो चरख हिंडोला पर सवार थे।

    लड़कियों की फ्रॉकें खोल दीं

    जलते मकानों की इस हवा ने,

    मनमौजी भीड़ें हँसती रहीं

    एक सुंदर इतवार को वार्षावा के।

    कोई पढ़ सकता है इसमें एक सीख

    कि वार्षावा या रोम के लोग

    सौदा-सुलुफ़ करते, खेलते, प्रेम करते हैं

    शहीदों की चिताओं की बग़ल से गुज़रते हुए।

    कोई और सीख पढ़ेगा

    मानवीय मुद्दों की क्षणभंगुरता के बारे,

    भूलने के बारे में जो बढ़ता है

    इससे पहले कि लपट शांत हो।

    हालाँकि तब मैंने सोचा था

    उनके अकेलेपन के बारे में जो मरते हैं।

    इस तथ्य के बारे में, कि जब ज़्यार्दानो

    तख़्ते पर चढ़ा था,

    उसे मानवीय भाषा में नहीं मिला

    एक भी शब्द

    मानवता को अलविदा कहने के लिए

    मानवता को, जो बची रहती है।

    पहले ही वे शराब पीने भाग रहे थे,

    सफ़ेद तारामीन देखते, बेचने,

    जैतून और नीबू की टोकरियाँ

    वे ले जा रहे थे शोर-मचाती भीड़ में।

    और वह पहले ही उन से दूर हो गया था,

    जैसे सदियाँ बीत जाएँगी

    और उन्होंने एक पल के लिए प्रतीक्षा की

    आग से उसके पलायन की।

    और वे जो अकेले मरते हैं

    संसार के लिए पहले ही विस्मृत,

    हमारी भाषा उनके लिए अजनबी हो गई

    एक पुराने ग्रह की भाषा की तरह।

    फिर जब सब कुछ एक क़िस्सा बन जाएगा

    और फिर कई बरसों बाद

    नई काम्पो दि फ़्योरी के ऊपर

    विरोध सुलगाएगा एक कवि का एक शब्द।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 105)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक अशोक वाजपेयी, रेनाता चेकाल्स्का
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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