Font by Mehr Nastaliq Web

कलिंग-विजय

kaling vijay

नीरजा रेणु

अन्य

अन्य

नीरजा रेणु

कलिंग-विजय

नीरजा रेणु

और अधिकनीरजा रेणु

    हे रक्त नदी

    भऽ प्रवहमान

    तोँ गतिमय भऽ केँ

    चलह-चलह।

    कहह कथा किछु जीवनमय

    जे कत' कत' तोहर तटपर

    छल युद्ध भेल।

    ओहि मनुष्य केर अभिलाषा

    छल पूर्ण भेल।

    जे करैत जय-जयकार

    राष्ट्रकेर

    राष्ट्रविप्लवी स्वयं बनल।

    अनगिन वीरक आहुति दैते

    अहंकारकेँ

    तुष्ट केलक।

    सोचह कनिये

    जे आयल वीर

    नव-परिणीताकेँ चूमि कहल

    हम शीघ्रे घर आपस आयब।

    अहाँ दीप बारि

    ताधरि ताकब

    प्रिये! निमिमेष

    सुन हमर बाट।

    नहि दंश रात्रिकेर अन्धकारमय

    पड़य सजनि

    तेँ राग मधुर

    कल्याण कंठमे

    बसा अविधवे!

    अन्तर्मन केर एक कोनमे

    बसा सजा हमरे राखब।

    छल मुदा विजय कामनाग्रस्त

    नृपकेर विचारमे हृदय कतऽ?

    छल हुनक अलक्ष्यक लक्ष्य एकटा

    —कऽ कलिंग केर विजय

    बनी सम्राट, पूज्य

    बहि गेल एही थलपर

    मानव केर खून

    आर

    सय बरखोधरि

    कहैत-कहैत रहल मौन।

    जे बूझि सकल बूझि गेल।

    जकरा ने हृदय

    की बूझय।

    जे वीरक रक्तक धार

    सोहागिन केर नोरें

    जहिया कहियो-काल मिलै अछि

    पाथर तहिया फाटि जाइत अछि।

    पिघलि-पिघलिकऽ

    रक्त-नदी बनि हहरि खसै अछि।

    अश्रु-रक्त मिलि रक्त नदी

    भू-पर बहैत अछि।

    उदयाचलपर

    तखन ईश

    मन्दिरमे निजकेँ बसा लैत छथि।

    कहैत छथि

    —वीर पुरुष केर खून

    ने चुप कहियो रहि सकलै।

    जहिया-जहिया वसुधापर बहल

    अपन सजनीक नोरसँ

    मिलल

    भेल अमर

    तथा गतिशील

    एही स्थलपर

    भऽकेँ

    रक्त नदी

    शाश्वत, निश्छल छन्द बनल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आगत क्षण ले (पृष्ठ 58)
    • रचनाकार : नीरजा रेणु
    • प्रकाशन : श्री शेखर झा
    • संस्करण : 1997

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY