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कहू की औ बाबू

kahu ki au babu

हरिमोहन झा

अन्य

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हरिमोहन झा

कहू की औ बाबू

हरिमोहन झा

और अधिकहरिमोहन झा

    (1)

    बसाते तेहन छै जे गोष्ठी मे कवियो

    गजल दादरा कव्वाली गबैये

    किछु दिन मे एहो देखब बाबू!

    जे कविताक संग संग तबला बजैये

    (2)

    श्रोता पुछलथिन्ह अकविताक कवि सौं

    कविताक अर्थ हमरा किछु नहि लगैये

    बजला अकवि—अर्थ लागौ लागौ

    हमरा यश अर्थ दूनू भेटैये

    (3)

    बजलाह बाबा—कहू की बाबू!

    जमाना देखै छी किछु नहि फुरैये

    जहाँ दूध दू घैल दै छल टका मे

    तहाँ आब नहि एक गिलासो भरैये

    (4)

    पंडितजी बजला—कहू की कुशल हम

    साबिक वला बात सभ उठि गेलैये

    तेहन कागजी प्लेट चललैक अछि जे

    भोजो में भरि पेट क्यो नहि खोबैये

    (5)

    पुजेरीजी बजला—ई युग वर्णसंकर

    केओ देवता मे ने निष्ठा रखैये

    शंकर महादेव कैं छोड़ि देलकैन्ह

    शंकर मकैयाक पूजा करैये

    (6)

    पीसा दोकाने सँ चिकरैत ऐलाह—

    अंधेर नगरीक देख तमाशा

    चिनियो सँ बेसी महग दैछ सतुआ

    मोदिआइन मोटकी अतत्तह करैये

    (7)

    मामा कहलथिन्ह भागिनकेँ—बच्चा!

    कतहु लोक मायो केँ मामी कहैये?

    अहाँक माय हम्मर बहिन छथि बाउ

    जे मम्मी सिखौलक से धुर्त्तइ करैये

    (8)

    बजला प्रोफेसर—कोनो एकलव्यक

    औंठा कटलथिन्ह गुरु द्रोण कहियो

    ओकर आब प्रतिशोध लेबाक खातिर

    कतेक शिष्य गुरुजन कैं तकने फिरैये

    (9)

    औफिस मे गेली जखन अफसरानी

    स्वामी कैं इँटलन्हि जे छलथिन्ह किरानी—

    शटप! एहि ठाँ छी अहाँ हमरे अंडर

    डिसीप्लीन एतंबो बूझय अबैये

    (10)

    पुछलिऐन्ह—बहिन जी! कहाँ सँ छी आएल?

    उत्तर देलन्हि—होश मे आबि बाजू

    हमर छींट ब्लाउज टा अहाँ देखै छी

    लड़का जे छी हम से बुझि नहि पड़ैये

    (11)

    सड़क पर पड़ल छैक कूड़ाक ढेरी

    कतेक ठाम नाको दबाबए पड़ैये

    सुनै छी मुदा जे करोड़ो टकासँ

    पटना मे फाइव स्टार होटल बनैये

    (12)

    पुछलथिन्ह क्यो ऊँट सँ—औऽ अहाँ केर

    एना टेढ़ गर्दनि किऐ लगैये?

    बिगड़ि ऊँट बाजल—अहूँ छी अथाहे

    हमर कोन अंग सोझ अहाँ कैं सुझैये?

    स्रोत :
    • पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 120)
    • रचनाकार : हरिमोहन झा
    • प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

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