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कबीर

kabir

आलोक श्रीवास्तव

अन्य

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और अधिकआलोक श्रीवास्तव

    अपना सुख सुरक्षित रहे

    कुछ भी दाँव पर लगे

    भविष्य

    संतति

    ऐश्वर्य

    अपने जीवन में सब कुछ

    रहे दुरुस्त

    सब कुछ बाक़ायदा

    और समाज बदल जाए

    यह कब संभव था बंधु

    यह कब संभव है?

    नाकाफ़ी है करुणा

    सदिच्छाएँ नाकाफ़ी हैं

    ज्ञान की परिधि से आगे है सत्य

    बग़ैर आँख से टपके लहू के मानी ही क्या!

    वह जो जागता है और रोता है

    वह जो दुखी है

    संतप्त

    वह हममें तुममें से नहीं

    वह फूँककर आया है अपना घर

    जीवन के सत्य ने झुलसा दिए हैं उसके हाथ

    वह मगहर में मरा नहीं

    भटक रहा है अब भी गंगा के घाटों पर

    उसकी पोथी पढ़ने वालों

    वह तुममें से नहीं

    वह इस मिट्टी का दर्द था

    सुखी जन कभी नहीं जान पाएँगे

    उसकी राख की धूल

    किन रास्तों पर दबी पड़ी है?

    किस भट्ठी की धौंकनी बनी उसकी मरी खाल?

    वह दुखिया

    हालाँकि ख़ैर तो सबकी मना रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह धरती हमारा ही स्वप्न है (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : आलोक श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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