जूते

jute

बहुत सुबह या शायद देर रात

छोड़ दिए गए हैं सड़क पर

एक जोड़ी पुराने जूते

अपनी पूरी उपस्थिति के साथ

पुराने और फटेपन में

भीतर पसरे ख़ालीपन और रह गई

गंध के साथ एक पूरे जगत की याद दिलाते हैं

जो इन जूतों ने किसी के साथ जिया था।

जूतों का साथ बहुत अपना है

जितना कि साइकिल का नहीं

जितना कि रेडियो का नहीं

जितना कि सूरज का नहीं

जितना कि बहुत-सी दूसरी बातों का नहीं

जूतों की बेतरह उधड़ी सियन और

देह पर ख़रोंचें एक लंबे और

थका देने वाले रास्ते को सुनाती हैं।

कौन जानता है कि सड़क पर छोड़ने के

बाद मुड़कर आख़िरी बार

इन्हें देखा भी गया होगा या नहीं

या चलते-चलते ही छोड़कर

आगे बढ़ गए होंगे पैर

और क्या छोड़ने के बाद भी एक बार

एक आख़िरी बार...

उठाए गए होंगे जूते हाथों में

क्या जान गए थे जूते

घर से निकलने के पहले ही

कि वे साथ जा रहे हैं आख़िरी बार।

जूतों ने धरती को मुलायम किया है

मुलायम किया है समय को

जैसा माँ ने किया है

घोंसला बुन चिड़ियों ने किया है

जैसा किया है चींटियों ने

भोर के साथ झरे पारिजात ने किया है

और जैसा गले लगकर रोती हुई स्त्री ने किया है।

उम्र के पिछले कुछ बरसों में

अपनी विद्रूपता और उधड़ेपन के लिए

हँसी को झेलते, छिनते जा रहे तस्मों से

अपनी छिली पीठ को बाँधकर

भरसक छिपाते रहे फटापन

कि पैर शर्मिंदा हों।

उनके नएपन में

जूतों का अपना ‘होना’ था

जो पैरों को चुभता रहा

पैरों ने बार-बार कहा तुम काटते हो

और जूते हैरान हुए

फिर पैरों के लिए अपनी देह और आत्मा को

ख़ुद घिस लिया

वे हमेशा घोड़ों की तरह

देहरी पर तैयार मिले

घोड़ों की तरह...

जो नींद के लिए भी लेटते नहीं हैं।

आज बिछे हैं सड़क पर

सूखे पत्तों की तरह

समय जब भूखे बाज की तरह

बहुत नीचे से उड़ रहा हो

तब ये जूते बहुत सी क्रूर संभावनाओं के लिए

छोड़ दिए गए हैं।

अभी दुपहर होगी...

घिरेगी साँझ

रात ओस में ठिठुरेगी

जूते ठोकरे खाएँगे

फिर शायद शहर के सबसे बड़े

कूड़ादान में पहुँचा दिए जाएँगे।

पर इस धरती पर

अपनी मुलामियत में

दो पैरों का रास्ता देखना

छोड़ जाएँगे।

स्रोत :
  • रचनाकार : विवेक चतुर्वेदी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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