जूते पर पॉलिश करते हुए

jute par polish karte hue

ललन चतुर्वेदी

ललन चतुर्वेदी

जूते पर पॉलिश करते हुए

ललन चतुर्वेदी

और अधिकललन चतुर्वेदी

    जूते पर पॉलिश करते हुए

    उसके चेहरे पर आई शिकन को पढ़ रहा हूँ

    उसके चेहरे पर जगह-जगह झुर्रियाँ भी ग‌ई हैं

    जूते हर मौसम में करते हैं मेरे पैरों की हिफ़ाज़त

    वैसे ही मैं इनकी सलामती की दुआ करता हूँ

    सड़क पर जहाँ-तहाँ खुले हैं इनकी मरम्मत के पॉर्लर

    इस बार जब मर्ज़ बढ़ा तो बूढ़े मोचीराम से

    मैंने इनकी पहली मुलाक़ात कराई

    वह विस्मय से कभी इन्हें तो कभी मुझे देख रहा था

    उस दिन लगभग दसवाँ टाँका लगाते हुए

    उसने कहा-बाबू इसकी तल्लियाँ जवाब दे चुकी हैं

    मैं तल्लियाँ बदलने की सोच रहा था कि

    उसने जूते बदलने की सलाह दे डाली

    चलते हुए मैंने उसे चुकाए रुपए दस बतौर मेहनताना

    तब एक बार उसने सिर उठाकर देखा—

    बाबू महँगाई का ज़माना है, क्या होता है दस रुपए में

    बुढ़े मोचीराम की बात में दम से अधिक ग़म था

    मेरे बूढ़े जूते के चेहरे पर चमक गई थी

    और मेरे चेहरे पर दोहरी उदासी छा गई थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ललन चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए