जीवन और मरण में तुम्हीं हो सुंदर

jiwan aur marn mein tumhin ho sundar

फणी मोहांति

फणी मोहांति

जीवन और मरण में तुम्हीं हो सुंदर

फणी मोहांति

और अधिकफणी मोहांति

    किस भाषा में लिखूँ तुम्हारा इतिहास

    किस शब्द माला में सजाऊँ

    हृदय की जयमाल।

    सब भाषाओं के सारे शब्द कम हों

    तुम्हारी बात कहने में;

    कहने लगूँ तुम्हारी बात

    समाप्त हो सारा जीवन;

    सूखी बाती की तेज गंध में

    पुण्य देवालय-सा महकता रहे तुम्हारा घर

    भर जाए, जो घर कभी था

    तुम्हारे लिए अति प्रिय, अत्यंत अपना।

    कोश के सारे शब्द हों

    तुम्हारी बात कहने में, जितने ढंग में,

    जितने क़ायदे में, आँख-मिचौनी खेलते शब्द

    पकड़ाई में आने पर भी मुट्ठी में,

    जितने तुम सुंदर जीवन में

    मरण में उतने ही हो।

    तुम्हारे लिए यह लोक परलोक

    वैसे कुछ नहीं

    अन्य जीवन, अन्य जगत पता नहीं है भी या नहीं।

    स्नेहमयी नारी-सा तुम्हारे आँचल में

    बँधा हुआ सारा संसार

    तुम तो भुवनमयी, स्वभावतः सुंदर

    तेरे गुणगान को भाषा नहीं मेरे पास।

    क्षमा करना मुझे अपनी अपारगता पर

    क्षमा करना मेरी अंधी वाचालता को,

    उग्र मान--गुमान

    स्पर्श आतुर आत्मा को।

    कहीं, किस मन्वंतर में तुम्हारा अनंत शयन,

    किस नीहारिका में तुम्हारा सहावस्थान,

    बेचारा भणित परोसता कवि

    कुछ नहीं जानता,

    कूल-किनारा नहीं पाता,

    भँवर में ऊब-डूब होता,

    लाल-लाल सूरज का देख भय मिल जाता आनंद में

    सिहर उठता।

    तुम्हारे हाथों लगाई बाड़ी-बगीचे में

    बौराए पवन-सा बार-बार धक्का खाता,

    अकेले-अकेले निस्संग जीवन काटता

    बंधु सा डायरी पढ़ता

    हर पंक्ति में, हर अक्षर में

    तुम्हारा हँसमुख चेहरा

    झाँक जाता।

    नित साँझ-सकारे, तुम्हारी

    परित्यक्त 'वर्णराग' के दृश्य में विभोर

    जिस दुर्लभ लोक में हो चाहे

    जीवन और मरण में लोभनीय

    तुम श्याम, तुम्हीं सुंदर।

    असंपूर्ण रह गई इच्छा शेष करने को अंतिम पंक्ति

    जो परिपूर्ण हो पाए

    भी हो सके दूसरे जीवन में,

    दूसरी दुनिया में,

    यदि वैसा कोई जीवन

    और जगत हो हमारे अनजाने में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 198)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : फणी मोहांति
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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