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जी चाहता है

ji chahta hai

कर्तार सिंह दुग्गल

अन्य

अन्य

कर्तार सिंह दुग्गल

जी चाहता है

कर्तार सिंह दुग्गल

और अधिककर्तार सिंह दुग्गल

    जी चाहे वह तट देखूँ

    जहाँ यार रहते हैं

    उस कुटिया उस महल को देखूँ

    साजन जहाँ बसते हैं

    बैठते-उठते, खाते-पीते

    कब सोए, कब जागे

    जब उसका मन कर आए

    किस-किस से बतियाए।

    जहाँ बैठकर हुकुम चलाएँ

    घूमे, चूमे, सँवारे

    जहाँ तैरते डूब रहे सब

    जहाँ से पार उतारे

    जहाँ उसी के हल चलते हैं

    चरख़े जहाँ पर घूमें

    गण गंधर्व जहाँ गाते है

    नाच नचाए धूम।

    कौन है उसका खाता रखता

    लेखा-जोखा करता?

    कब सुनता फ़रियाद किसी की?

    कान कहाँ धरता है?

    कब भेजे, क्या भेज बुलाए?

    क्या संयोग बनाए?

    सहक रहा क्यों फूल लग रहा

    बिन खिले क्यों झरता?

    बात यह समझ आए

    यही बात मैं बूझ सकूँ तो

    बैठ उसके चरणों में

    यह पहेली सुलझाऊँ।

    कब से खिचड़ी रीझ रही है

    यह तो बात कोई

    आँख मूँद नियति को मानूँ

    या बेदीन कहाऊँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 104)
    • रचनाकार : कर्तार सिंह दुग्गल के साथ अनुवादक फूलचंद मानव और योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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