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झुटपुटा

jhutputa

अनुवाद : दिनेश चमोला

मौं तिं: मुं

मौं तिं: मुं

झुटपुटा

मौं तिं: मुं

और अधिकमौं तिं: मुं

    एक सुनहरी शाम को

    मैं

    अपने अध्यापक के साथ

    घूमने गया

    यहाँ से

    उसके घर तक की यात्रा की

    उसके शब्द प्रेरक थे

    हालाँकि कहते हैं लोग

    मैं दाँतरहित बूढ़ा हूँ

    चाहे वे अनादर सहित

    मेरा करते हैं मज़ाक़

    कि मैं बना हूँ संगमरमर का

    मुझे नहीं है परवाह

    हालाँकि

    वे नहीं करते मुझे शामिल

    मुझे नहीं है परवाह

    ओह!

    निगल जाते हैं लोग

    अपनी ही अस्मिता को

    हालाँकि हो गया हूँ मैं बूढ़ा

    पोपला, बहरा, झुर्रीदार

    काँपती है मेरी आवाज़

    नहीं है

    मुझे कोई दु:ख

    अपनी

    मौत से पहले

    मैं

    करूँगा संघर्ष

    अपने देश और अपने लोगों के लिए

    विनम्रता से

    करता हूँ

    मैं प्रतीक्षा

    मृत्यु के रथ की

    उसके शब्दों की

    समाप्ति पर

    मैंने

    क्षितिज की ओर देखा

    सूर्य का आधा गोला

    जो छुप गया था

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 171)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : मौं तिं: मुं
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

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