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झलकियाँ

jhalkiyan

शशि शेखर

अन्य

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शशि शेखर

झलकियाँ

शशि शेखर

और अधिकशशि शेखर

    लगातार स्मृतियों की झलकियों से

    रूबरू होना

    वह घंटों का इंतिज़ार

    जो कभी-कभी वर्षों का हो जाता है

    थोड़ी-सी आवाज़ पर

    दौड़कर दरवाज़े तक आना

    मायूसी के साथ

    फिर लौटना,

    वे क्षण—

    जब चारों ओर चुप्पी थी

    अथाह शांति

    केवल साँसों का उतार-चढ़ाव

    जो वातावरण को गरम किए था

    उस चुप्पी में

    कहीं घुल रहे थे हम

    एक-दूसरे में

    डूबते-उतरते पर साथ-साथ बहते

    वे दिन

    जब भय था भवितव्यता का

    डर था रोशनी का

    उजाले से डरते थे हम

    शायद उजाला भी हमसे डरता था

    पर

    अब क्या

    सब कुछ बीत गया है?

    बीतना समय का होता है

    या संबंधों का?

    बीतना इच्छाओं का होता है

    या स्मृतियों का?

    एक-एक क्षण

    एक-एक स्मृति

    जिसमें जीवन के कुछ वर्ष हैं

    उन वर्षों में

    जो देखा या जो पाया है

    वह स्वयं जीवन ही है

    अब

    उन बीते क्षणों की स्वप्न-सी मोहकता

    स्वप्न-सी क्षणिक है

    पर

    क्षणिकता में मन रमता नहीं

    क्योंकि

    विषयों का बदलना

    मन को बदलता रहता है

    और

    इच्छा होती है

    सनातन को पाने की

    वह सनातन मैं हूँ

    या मुझमें विलीन तुम!

    हृदय की अँधी गहराई से

    उस बहते सफ़ेद कुहासे से

    जहाँ ठिठुरकर खुदको समेटे रहती थी

    वह नंगी संवेदनशील

    लगभग पारदर्शी-सी

    गुलाबी देह,

    जिस पर नज़रें पड़ीं

    गड़ीं चुभीं

    झकझोर गईं

    मानो किसी ने खाल उतार दी हो

    नन्हीं नाज़ुक चिड़िया की!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशि शेखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अदिति शर्मा द्वारा चयनित

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