जगहें

jaghen

वस्तुओं मनुष्यों

जानवरों पक्षियों

बारिश की दुपहरों

सर्दियों की शामों

लहलहाती फ़सलों

छोटे सुंदर फूलों

विशालकाय वृक्षों

झर-झर बहते झरनों

उतरती बाढ़ की नदियों

घटते-बढ़ते चाँद

तमतमाए सूरज

नक्षत्रों भरे आकाश

सूने आकाश

पक्षियों और पतंगों की क़तार से

भरे आकाश

कंठ और वाद्यों से निकलते स्वरों

चारों तरफ़ से आती

बहुविध ध्वनियों

जीवन और मृत्यु की निरंतर आवृत्तियों

अभिव्यक्तियों-निर्मितियों

वंचनाओं-जिज्ञासाओं-कामनाओं

क़िस्सों-कविताओं

रहस्यों-रोमांचों

भावों-अभावों

उत्तरों-अनुत्तरों

राग-विरागों में

डूबे-खोए

बने-अधबने

लड़खड़ाते-सँभलते

बढ़ते-रुकते

जान नहीं पाते अक्सर

घर अपना घर

दूर कहीं इन सबके

टूट-टूट जाता जब मन

दिख पाता है दर

जगहें बाहर फैली दिखतीं

हम जगहों के अंदर

जगहों से बनते-बनते

जगहों से बाहर जाते

बाहर-बाहर रह जाते

अब सपनों में ही पाते।

स्रोत :
  • रचनाकार : मिथलेश शरण चौबे
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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