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जब काम बुझ गया

jab kaam bujh gaya

हर्षित मिश्र

अन्य

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हर्षित मिश्र

जब काम बुझ गया

हर्षित मिश्र

और अधिकहर्षित मिश्र

    अब

    सृष्टि है,

    रचना है,

    संगीत है,

    पर तुम नहीं।

    हर स्वर

    अब शून्य में गूँजता है,

    जैसे कोई वाद्य

    जिसके तार तो हैं,

    पर छेड़ने वाली ऊँगलियाँ खो चुकी हैं।

    मैं रचयिता नहीं—

    अब केवल एक कवि हूँ,

    जो अपनी रचना में

    अपने ही प्रेम की राख ढूँढ़ता फिरता है।

    जब तुम थीं,

    हर कण में जीवन था—

    हर मौन, प्रतीक्षा था।

    अब सब स्थिर है—

    जैसे कोई दीपक

    जिसमें बाती तो है,

    पर तेल नहीं।

    तुम्हारे होने से

    मैं स्थायी तो हो गया हूँ,

    पर अधूरा भी।

    क्योंकि शाश्वत वही होता है

    जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सका।

    अब मैं कुछ नहीं रचता—

    सिर्फ लिखता हूँ,

    विरह की पंक्तियाँ,

    उस भाषा में

    जो बस मैंने और तुमने साझा की थी।

    अब ब्रह्माँड मेरी प्रतीक्षा नहीं करता,

    क्योंकि अब मैं

    उसके भीतर एक मौन लिपि हूँ—

    जो केवल एक नाम दोहराती है।

    मैंने प्रेम से पूर्व

    प्रेम की कल्पना की थी—

    और उसी कल्पना से एक संसार रचा।

    पर प्रेम के बाद

    मैं रचनाहीन हो गया।

    यही तो होती है

    एक प्रेमी कवि की पराजय—

    कि वह

    सारी दुनिया को कहानियाँ दे सकता है,

    पर अपने लिए

    प्रेमिका को दोबारा नहीं रच सकता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हर्षित मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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