इस भूमंडल में

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अष्टभुजा शुक्‍ल

अष्टभुजा शुक्‍ल

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अष्टभुजा शुक्‍ल

और अधिकअष्टभुजा शुक्‍ल

    सूर्य नमस्कार!

    मुंशी रामदेव जी को

    जिन्होंने नरकट की सुंदर क़लमें गढ़ीं

    हाथ पकड़कर बनाना सिखाया

    जनपद और प्रदेश का मानचित्र

    खेद कि

    कभी रेड़ की पत्ती बनाया तो कभी तेंदू की

    सादर प्रणाम

    मुंशी विंदेश्वरी प्रसाद के उस चेतनदास डंडे को

    जिसके प्रताप से

    बनाने का अभ्यास करता रहा

    देश और संसार के मानचित्र का

    खेद कि

    गंगा की जगह वोल्गा भरता रहा

    और आल्पस की जगह विंध्याचल

    बहुत-बहुत आभार

    आचार्य शर्मा जी का

    जिनके सौजन्य से सीख सका

    भूमि और नवग्रह पूजन का विधि-विधान

    खेद कि

    यहाँ की मिट्टी, जलवायु, अग्निवास

    आयात और निर्यात जानते हुए भी

    ठीक-ठीक नहीं बना सकता

    अपने गाँव का कोई मानचित्र

    अब घूम रहा हूँ

    संसार के महानतम भूगोलविद् पटवारी के पीछे-पीछे

    कि कहीं छूटा है

    कोई पट्टा

    कोई घूर

    कोई चरागाह

    कोई क़ब्रगाह

    जहाँ खड़ा हो सकूँ

    इस भूमंडल में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अष्टभुजा शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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