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ईश्वर की नज़र में

iishvar ki nazar men

अनुवाद : सुरेश सलिल

आंद्रे ब्रेतों

अन्य

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आंद्रे ब्रेतों

ईश्वर की नज़र में

आंद्रे ब्रेतों

और अधिकआंद्रे ब्रेतों

    (लुई आरागों के लिए)

    “आधी रात से कुछ पहले गोदी की ढलान से

    कोई परेशान-हाल औरत अगर तुम्हारे पीछे लगे तो ध्यान देना।

    वह आसमानी आभा होगी। आसमानी आभा से डरने की

    कोई वजह नहीं।

    वहाँ एक दरख़्त में हल्के-भूरे रंग का एक बड़ा-सा कलश होगा।

    मिश्रित रंगों वाला शहर का घंटाघर तुम्हारा संदर्भ-बिंदु होगा।

    जल्दी मत करना,

    ध्यान रहे। गर्म पानी का भूरा चश्मा आसमान में पर्णांग की

    कोंपलें उछालता तुम्हारा अभिनंदन कर रहा होगा।

    मछली के तिकोने काँटे से बंद किया हुआ पत्र अब

    पशुओं को सधाने वाले किसी आदमी की आह की तरह

    उपनगरों की रोशनी से होकर गुज़र रहा था।

    सब कुछ वैसा ही।

    उस ख़ूबसूरत औरत ने, क़फ़स की उस बुलबुल ने,

    पास-पड़ोस में जिसे नन्हें धूपछाँही पिरामिड के बतौर जाना जाता है,

    ख़ुद की राहतमंदी के लिए अपने को उधेड़ा; किसी बादल की तरह—

    मानो करुणा की एक थैली।

    फिर एक सफ़ेद पोशाक, घर-बार तथा दूसरे कामकाज सँभालने के लिए

    व्यवहार में आने वाली,

    पहले कभी की बनिस्बत चैन का अहसास।

    जैसे सीपी में बंद कोई शिशु...

    मगर श्श्—

    बक्षावरणी अपने में सहेजे स्तनों को पहले से ही

    एक ख़ूबसूरत रहस्य कथा के हवाले कर रही थी।

    ठीक तभी, पुल के ऊपर हिलती-डुलती ओस

    बिल्ली के सिर जैसी दिखी।

    रातें, और उनके संभ्रम समाप्त होंगे।

    यहाँ संध्या वंदन से वापस लौट रहे बूढ़े पादरी हैं

    और उनके ऊपर झूलती हुई एक बहुत बड़ी चाबी।

    यहाँ प्रसन्नबदन अग्रदूत हैं, अंततः यहाँ उसका पत्र है

    या कहूँ कि उसके होंठ : मेरा दिल ईश्वर को टेरता एक गायक पक्षी है।

    किंतु जब उसके होंठ खुलते हैं, कुछ भी बचा नहीं रहता

    फ़क़त एक दीवार के

    फड़फड़ाती हुई एक समाधि में; एक चमकविहीन पाल की तरह।

    अनंतता क़लाई घड़ी टटोलती है

    आधी रात से कुछ पहले गोदी की ढलान में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 147)
    • रचनाकार : आंद्रे ब्रेतों
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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