हम तो सच कहने और सुनने के लिए कविता की तरफ़ आए थे

hum to sach kahne aur sunne ke liye kawita ki taraf aaye the

विनय सौरभ

विनय सौरभ

हम तो सच कहने और सुनने के लिए कविता की तरफ़ आए थे

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    हमारे बारे में कहा गया...

    हमने एक ही तरह से कविताएँ लिखीं

    और जाने गए एक ही तरह से...

    जिसने कविता में गहरी उड़ान भर ली थी

    और जिसके झोले में कई बड़े पुरस्कार थे

    जिसे राजधानी एक बड़े अफ़सरनुमा कवि को

    सम्मानित और उसकी पहली किताब को विमोचित करने के वास्ते

    वातानुकूलित रेलगाड़ी से बुलाया गया था

    अप्रत्याशित तामझाम के बीच कहा जिन्होंने :

    दुख होता है

    अभी हमारे साहित्य संसार में

    एक ही तरह की कविताएँ

    और एक ही तरह के दृश्य वहाँ

    पीड़ा के गलियारे में बड़े कवि की आत्मा भटक रही थी

    बुझते हुए स्वर में कहा उन्होंने आगे :

    ग़ौरतलब है

    एक ही तरह की चिड़ियाएँ

    एक ही तरह के फूल और पहाड़

    माँ और बहनें भी एक ही तरह की

    पिता भी रहे हैं कवियों के

    एक ही तरह से

    मतलब की कविताओं में यह एक-सा-पन!!

    कुछ ऐसा असर था उस प्रसिद्ध कवि के कथन में

    कि हम समझ नहीं पाए

    यह संकट है संवेदना का

    साहित्य का

    या हमारे समाज का!

    जैसा कि होना था

    एक बेचैनी घेर कर खड़ी हो गई हमें

    थोड़ी देर के मौन के बाद उन्होंने बताया

    रूमानी और भावुक होने की हद तक

    कि बची है इस संकट से अभी विमोचित संग्रह की कविताएँ!

    बाहर हो रही तेज़ बारिश पर ध्यान केंद्रित कराते हुए सभागार का

    संग्रह के बारे में कुछ और ख़ुशगवार बातें की उस नामवर कवि ने

    तो भीग गयीं आह्लाद से उस अफ़सर की कविताएँ और उनकी धर्मपत्नी

    जैसे आषाढ़ की पहली बारिश बाँध लेती है हमारा मन

    श्री... की कविताएँ उसी बारिश में हरिप्रसाद चौरसिया की जैसे बाँसुरी हैं!

    इस तरह से चीज़ों को रिलेट करके देखने की उनकी प्रतिभा

    और बुद्धि पर सनाका खा गई हमारी नई पीढ़ी

    हम जानते थे

    सम्मानित कवि की कविताओं में पहली बारिश का रूमान नहीं था

    और उसमें हरिप्रसाद चौरसिया की बाँसुरी की मौजूदगी का आभास

    एक बड़ा बेशर्म झूठ था

    वे हमारे शहर के एक बड़े अफ़सर की कविताएँ थीं

    वे कविताएँ हमारे परिचय क्षेत्र में थीं

    उनका सत्य जानते थे हम

    इसलिए हम भाषा और अभिव्यक्ति के विस्मित कर देने वाले

    उस प्रायोजित चमत्कार के फेर में नहीं पड़े

    लेकिन थोड़ी देर के लिए यह ख़याल तो आया ही कि

    हम तो सच कहने और सुनने के लिए कविता की तरफ़ आए थे

    और यही बेहतर होता

    हरिओम राजोरिया, प्रेमरंजन अनिमेष, रमेश ऋतंभर, कल्लोल चक्रवर्ती, भैया संजय कुमार कुंदन

    कि हम कोयले की मंडी में चले जाते

    दिल्ली के चाँदनी चौक पर बेचते कंघी

    और लड़कियों के माथे का रिबन

    इसकी मिसाल दुनिया में नहीं है और कहीं बताते...

    कहीं फ़ुटपाथ पर छान लेते कोई फ़ोटूग्राफ़ी की दुकान

    गले में रंगीन रूमाल लटकाए देह की दलाली में लग जाते

    ...मगर इस तरफ़

    नहीं आते!

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए