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हम कहीं नहीं बचेंगे

hum kahin nahin bachenge

सुजाता नारायण

अन्य

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सुजाता नारायण

हम कहीं नहीं बचेंगे

सुजाता नारायण

और अधिकसुजाता नारायण

    उधर कहीं पर बम गिरते हैं

    और इधर किसी घर का चूल्हा बुझ जाता है

    उधर भी इंसान मरता है

    इधर भी इंसान मर जाता है

    युद्ध दुनिया की एक बड़ी घटना है

    उसे रोकने के लिए एक बड़ा संगठन है

    पर इंसान का मरना एक छोटी घटना है

    जिसे बचाने कोई ईश्वर संगठित नहीं होता

    तुम सुबह उठते हो, देखते हो—

    युद्ध हो रहे हैं

    इंसान मर रहे हैं दुर्घटनाओं में

    इंसान मर रहे हैं विपदाओं में

    ये पहली बार नहीं हो रहा

    बल्कि ऐसा ही होता रहा है

    फ़र्क़ बस इतना है—

    कि पहले समाचार समय पर नहीं मिलते थे

    अब समय से पहले समाचार मिल जाते हैं

    कि इंसान पहले भी मरता था—

    युद्धों में, दुर्घटनाओं में, विपदाओं में

    कि इंसान पहले भी मरता था—

    ग़रीबी से, बेकारी से, महामारी से

    पहले हम मरते थे सुविधाओं के अभावों से

    अब हम मरते हैं सुविधाओं से

    वो मनु था

    वो प्रलय में भी बचा था

    हम मानव हैं

    हम कहीं नहीं बचेंगे!

    प्रार्थनास्थलों में

    अपने घरों में

    अगर हम बचें भी कथा में, कविताओं में

    तो हमारा इतिहास बचा रहेगा

    हमारी संस्कृति बची रहेगी

    जिसके नीचे हमारी अस्थियाँ रची रहेंगी!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुजाता नारायण
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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