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हम बंजारे

hum banjare

ओम नागर

अन्य

अन्य

ओम नागर

हम बंजारे

ओम नागर

और अधिकओम नागर

    दुःख जब-जब भी बरसा

    मेरे मन की धरती पर

    तब-तब तेरी यादें तिरपाल बन

    ढाँकती रही मेरे संपूर्ण अस्तित्व को

    और बचाती रहीं विपरीत

    मौसमों की मार से।

    मौसम बदलते हैं

    बदलते रहेंगे,

    ज़मीन बदली

    बदलेगी

    पोसरी हुई भी कभी तो

    यादें ही दृढ़ बनाती रही

    विश्वास के रजकणों को

    ताकि खूँटियों की जकड़न

    वैसी की वैसी बनी रहे ताउम्र

    और रहे भी क्यों नहीं

    एक बाशिंदा वह भी तो है

    उसकी अपनी चीज़ें भी तो रखी हैं

    किसी कोने में रखे

    पुराने बक्से के पेंदे में बिछे

    अख़बार के नीचे

    और कौन होगा भला जो

    अपनी चीज़ों को सँभाले

    हम बंजारों का क्या

    क़बीले आज यहाँ तो कल वहाँ

    यह तो

    उम्र भर का सिलसिला है

    बसना, उजड़ना, फिर बसना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ओम नागर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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