ज़हरबाद
zaharbad
वे एक जून भूखी रह लेतीं
बीजों को हाथ न लगाती थीं
झरबेरी मकोय और भटकइया तक को
भविष्य के लिए संचित रखा उन्होंने
उनके बच्चे भी
इस बात के अभ्यासी थे
फिर भी उनकी आँखों में तिरती रहती
निश्छल साँवली हँसी
अब किस देश से आती हैं ये हवाएँ
सूख गई बीजों के भीतर की नदी
उनके पसीने से भरी नहीं दरारें खेतों की
कोने में पड़ा-पड़ा उनका हल
खोता गया अपनी चमक
घुनी हुई हरस पिछले ही साल
लगा दी गई चूल्हे में
इस तरह अंतिम बार उन्होंने
अन्न और आग को मिलाकर
अपना भोजन पकाया
अंतिम बार उनके चूल्हे से उठा धुआँ
हमेशा के लिए जम गया उनकी आँखों में
और डूब गई आँखों की रोशनी
उनकी आँखों में किरचों की तरह गड़ती है
आसमान की सफ़ेदी
अब उन्हें कचोटता है कोई मूर्त दुःख
जो उनके हाथ के घट्ठों की तरह ही
उग आया है उनकी जीभ पर
और वे अपने ही रक्त और नमक में
अंतर करना भूल गईं
खो गए उनके जुआठा के दोनों सइल
या ले गया कबाड़ी वाला भंगार-भाव
बच्चों को थोड़ी-सी सोनपापड़ी दे
या किसी ने गाड़ दिया उनकी ही पीठ में
छूरे की तरह
उनके ख़ून में जो बह रहा है
वह लोहा नहीं
उसकी कमी का सबूत है... ज़हर है मोरचे का
जहाँ तोपती थीं वे ख़ून-सने बलग़म अपने
वहीं खेतों में दफ़न है
उनका शव भी
उनके बैलों को लकवा नहीं था
बस नहीं रहा नाधने वाला गोसइयाँ उनका
वे भूलते गए खेतों में चलने की कला
दायाँ और बायाँ अपना
क़साई को देख बैलों ने खन डाला खलिहान पूरा
उनके खुरों को
गोबर और आँसू से मिटाती हैं वे
छातियों में उतरा नहीं दूध
तो वे पागल हो गईं
कें-कें करते बच्चे छातियाँ नीछ्ते
सो गए लंबी नींद
वे भूख को पल्लू से बाँधे
नींद आँखों में छुपाए हुए
डोलती हैं परछाइयों की तरह
वे भागी जा रहीं अपना लूगा समेटे
धरती के साथ ही
वे भी दफ़न होना चाहती हैं
अपने ही भाग्य से बचे बच्चे
हत्यारों की क़ैद में सुबकते हैं
कई दिनों से कलेवा नहीं खाया उन्होंने
अब उमगता ही नहीं
उनकी आँखों में कोई सपना
उनकी ज़ंग खाई आँखें...
उन्होंने इस मिट्टी से
ज़हरबाद बनते देखा है...
- रचनाकार : अनुपम सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.