ज़हरबाद

zaharbad

अनुपम सिंह

अनुपम सिंह

ज़हरबाद

अनुपम सिंह

और अधिकअनुपम सिंह

    वे एक जून भूखी रह लेतीं

    बीजों को हाथ लगाती थीं

    झरबेरी मकोय और भटकइया तक को

    भविष्य के लिए संचित रखा उन्होंने

    उनके बच्चे भी

    इस बात के अभ्यासी थे

    फिर भी उनकी आँखों में तिरती रहती

    निश्छल साँवली हँसी

    अब किस देश से आती हैं ये हवाएँ

    सूख गई बीजों के भीतर की नदी

    उनके पसीने से भरी नहीं दरारें खेतों की

    कोने में पड़ा-पड़ा उनका हल

    खोता गया अपनी चमक

    घुनी हुई हरस पिछले ही साल

    लगा दी गई चूल्हे में

    इस तरह अंतिम बार उन्होंने

    अन्न और आग को मिलाकर

    अपना भोजन पकाया

    अंतिम बार उनके चूल्हे से उठा धुआँ

    हमेशा के लिए जम गया उनकी आँखों में

    और डूब गई आँखों की रोशनी

    उनकी आँखों में किरचों की तरह गड़ती है

    आसमान की सफ़ेदी

    अब उन्हें कचोटता है कोई मूर्त दुःख

    जो उनके हाथ के घट्ठों की तरह ही

    उग आया है उनकी जीभ पर

    और वे अपने ही रक्त और नमक में

    अंतर करना भूल गईं

    खो गए उनके जुआठा के दोनों सइल

    या ले गया कबाड़ी वाला भंगार-भाव

    बच्चों को थोड़ी-सी सोनपापड़ी दे

    या किसी ने गाड़ दिया उनकी ही पीठ में

    छूरे की तरह

    उनके ख़ून में जो बह रहा है

    वह लोहा नहीं

    उसकी कमी का सबूत है... ज़हर है मोरचे का

    जहाँ तोपती थीं वे ख़ून-सने बलग़म अपने

    वहीं खेतों में दफ़न है

    उनका शव भी

    उनके बैलों को लकवा नहीं था

    बस नहीं रहा नाधने वाला गोसइयाँ उनका

    वे भूलते गए खेतों में चलने की कला

    दायाँ और बायाँ अपना

    क़साई को देख बैलों ने खन डाला खलिहान पूरा

    उनके खुरों को

    गोबर और आँसू से मिटाती हैं वे

    छातियों में उतरा नहीं दूध

    तो वे पागल हो गईं

    कें-कें करते बच्चे छातियाँ नीछ्ते

    सो गए लंबी नींद

    वे भूख को पल्लू से बाँधे

    नींद आँखों में छुपाए हुए

    डोलती हैं परछाइयों की तरह

    वे भागी जा रहीं अपना लूगा समेटे

    धरती के साथ ही

    वे भी दफ़न होना चाहती हैं

    अपने ही भाग्य से बचे बच्चे

    हत्यारों की क़ैद में सुबकते हैं

    कई दिनों से कलेवा नहीं खाया उन्होंने

    अब उमगता ही नहीं

    उनकी आँखों में कोई सपना

    उनकी ज़ंग खाई आँखें...

    उन्होंने इस मिट्टी से

    ज़हरबाद बनते देखा है...

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुपम सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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