कुम्हार के हाथ

kumhar ke hath

विनय सौरभ

विनय सौरभ

कुम्हार के हाथ

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    घूमते चाक पर रचते हुए

    ये हाथ कितने सुंदर हैं!

    जैसे सुबह की किरणें

    घास पर ठहरी हुई रात की ओस

    जैसे सुनहले हो चले धान से भरे खेत

    जैसे माँ के हाथ!

    आँखें बंद कर लो

    जीवन में जो सबसे सुंदर लगा हो तुम्हें,

    उसे याद करो

    फिर कुम्हार के हाथों के बारे में सोचो

    जिन पर मिट्टी लगी हुई है

    और जो अहर्निश घूमते चाक पर

    सदियों से किसी मार्मिक शिल्प में हमसे बातें कर रहे हैं

    बस इन्हें आँखों से छुआने का मन होता है!

    यह रचते हुए हाथ हैं

    दुनिया को संबल और भरोसा देते हुए

    कच्ची मिट्टी की लोइयों में कविता गूँथते हुए!

    सोचता हूँ—

    मिट्टी से जीवन सिरजने वाले

    इन मानवीय हाथों को हमने क्यों नहीं रखा

    अपने सिर आँखों पर?

    हमने फ़ुटपाथ पर इन्हें क्यों छोड़ दिया अकेला!

    ये किस उम्मीद पर घुमाए जा रहे हैं चाक,

    कोई पूछता भी है इनसे कि

    माटी से तुम्हारा रिश्ता इतना गहरा कैसे है?

    एक कुम्हार ही कह सकता है पूरे भरोसे से

    कि वह मिट्टी का आदमी है

    क्या आप अपने बारे में यह बात

    पूरे यक़ीन से कह सकते हैं?

    मिट्टी से एकमेक हो गई इन ज़िंदगियों को

    तुम कितना पहचानते हो

    किसी कुम्हार का नाम बताओ

    तुमने उनके बनाए किसी घड़े का पानी तो पिया होगा?

    उनकी औरतें और बच्चे जो

    दीयों के ढ़ेर के साथ बैठे हैं

    तुम्हारे शहर की सड़कों के किनारे

    आज उन्हें, उनके आँवे की गंध से

    उनको रचने वाले हाथों के साथ याद करो

    फ़ोन पर किसी को मत कहो कि

    दीये महँगे हो गए हैं इस बार

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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