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हान

haan

प्रेमा झा

और अधिकप्रेमा झा

    ज़िंदगी जैसे पोखरण परमाणु परिक्षण

    चैट जीपिटी और एआई हो गई

    सिलबट्टे पर धनिया-पुदीना पीसते हुए

    अपने बड़े से फ़्लैट में

    सोचती हूँ आदिवासी हो जाऊँ

    काग़ज़ की नाव वाले पन्ने पर

    रोशनाई की शीशी में मेहंदी वाली कुप्पी रखकर

    सबसे छुपकर हान लिखती हूँ

    से कबूतर

    से ख़रगोश

    से गाय

    और बढ़ती हुई आगे

    कबूतर, ख़रगोश और गाय की पीड़ा को सोच लेती हूँ।

    कबूतर एलर्जी फ़ैलाने के लिए बदनाम हो रहा

    उसने एक शब्द नहीं बोला है अब तक

    ख़रगोश को पालतू बनाया जाना चाहिए मगर वो कुत्तों की अहर्ता से त्रस्त है

    गाय जिसे केवल पोषण के लिए धरती पर भेजा गया है

    उसका देना एक कष्ट है

    कहीं उसे वोट बैंक की राजनीति बनाकर

    गलियों में आरती-थाली के साथ घुमा देते हैं

    कभी उसके थन को हान का दुःख कहकर

    उसकी अस्तित्व को धत्ता बताते हुए

    वेगन डाइट का प्रचार किया जाता हैं

    प्रतिशोध की चरम पर

    लालसाएँ नहीं केवल जीवटता बचती है

    हर आदमी दुःख है

    यह दुःख की पराकाष्ठा ने सिलबट्टे पर

    रोशनाई की शीशी को तोड़ते हुए कहा

    धनिया-पुदीना राजनीति है

    मुंबई वाला फ़्लैट, एआई और परमाणु परिक्षण

    सब सहोदर हैं

    एक दिन तुमको निगल जाएँगे

    और तुम बन जाओगे पुच्छल तारा

    हान अंतिम दुःख नहीं, उद्दम है

    संसार के प्रयास से पहले हैं

    इधर स्याही और सिलबट्टा

    लिखते हुए

    कूटते हुए

    कभी चटनी का सोचती है

    कभी गुलकारी का

    और गाय की थन तक सोचते-सोचते एक पूरा चुनाव जीत लिया जाता है।

    (दक्षिण कोरियाई लेखिका, हान काँग, साहित्य की नोबेल पुरस्कार विजेता, 2024 को समर्पित)

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रेमा झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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