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गिलहरी

gilahri

आती है गिलहरी नाचती, पूँछ उठाती

अपने सिर पर अपनी दुम का चँवर डुलाती

कभी बैठ कर इत्मिनान से देख कहीं पर

पड़ा हुआ रोटी का टुकड़ा एक, उठा कर

उसे, पकड़ दोनों हाथों से नोच-नोच कर

खाती, औ’ सहसा हो चंचल, पूँछ नचाकर

दौड़, भाग जाती आँगन में, या पेड़ों पर

चढ़कर किसी डाल पर छाया में सुन मर्मर

पत्तों का, गाने लगती है तीखे स्वर से—

अपने गीत, और सहसा ही चुप होकर

कूद पेड़ से नीचे, देख कहीं दूरी पर

कोई और गिलहरी, उसके पास दौड़कर

उसकी पूँछ दबा कर मुँह से, उसे छेड़ती

दिन भर उसके साथ छाँह में खेल-खेल कर।

स्रोत :
  • पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 272)
  • संपादक : सुरेश सलिल
  • रचनाकार : चंद्रकुँवर बर्त्वाल
  • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
  • संस्करण : 2018

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