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गुम हुई किताबें

ghum hui kitaben

प्रत्यूष चंद्र मिश्र

प्रत्यूष चंद्र मिश्र

गुम हुई किताबें

प्रत्यूष चंद्र मिश्र

और अधिकप्रत्यूष चंद्र मिश्र

    पिछले कुछ दिनों से खोज रहा था एक किताब

    जिसे वर्षों पहले ख़रीदा था मेले में

    मैं बहुत हैरान-परेशान उसे खोजता रहा लगातार

    लेकिन वह नहीं ही मिली

    वह खो गई इस तरह जैसे मेले की भीड़ में खो जाता है कोई बच्चा

    फिर जो खोजना शुरू किया

    तो एक-एक कर कई ग़ुम हुई किताबों के बारे में पता चला

    पीछे वाले रैक में रखी थी ‘हिंद स्वराज’ अब मिल नहीं रही

    किसी मित्र की कृपा बरसी होगी उस पर

    बहुत दिन हुए ‘एनहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ पर भी नज़र नहीं पड़ी

    ‘कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो’ की पुरानी प्रति भी मित्रों की सदाशयता का शिकार हुई थी

    जो खोजने चला तो पाया कि कविता की कई किताबें अपनी जगह पर नहीं थीं

    उपन्यास ग़ायब थे, कहानियाँ खो गई थीं अपने पात्रों समेत

    बस उनकी कहीं धुँधली कहीं गहरी रेखाएँ दर्ज थी स्मृतियों के बियाबान में

    इन सब किताबों में सब विचार लेखकों के ही थे ऐसा क़तई नहीं था

    इन किताबों के भीतर थे जो विचार

    उनसे ‘मुठभेड़’ की एक पूरी दास्तान मौजूद थी इन किताबों के भीतर

    नेहरू ने जो ख़त लिखे थे इंदिरा को उस किताब में मैंने दर्ज किए थे कई बिंदु

    ‘वोल्गा से गंगा’ वाली किताब में मैं कितनी बार चौंका था

    अब उसकी नई प्रति में इसका कोई हिसाब नहीं

    किताबें जो हमारे पास होती हैं

    वे सिर्फ़ लेखकों की भावनाओं का इज़हार भर नहीं होतीं

    उनमें मनुष्यता की एक सार्वभौमिक पहचान समाहित होती है

    बहुधा वे संवाद को आमंत्रित करती हैं

    किताबों के हाशिए पर हम दर्ज करते हैं अपना ग़ुस्सा और प्रेम

    मार्कर से लगाते हैं लाल-नीले निशान

    पेंसिल से खींचते हैं आड़ी-तिरछी रेखाएँ

    इन ग़ुम हुई किताबों में हमारी वे तमाम स्मृतियाँ होती हैं

    जिनका कोई हिसाब तो कई बार हमें भी मालूम नहीं होता

    गुम हुई किताबें नए ज़माने की किताबों की तरह नहीं होती

    जिन पर हम कुछ लिख नहीं सकते

    ग़ुम हुई किताबों की कोई पंक्तियाँ कोई विचार

    कोई कथानक छिटककर हमारे वर्तमान में दाख़िल होता है

    और हम एकाएक चौंक पड़ते हैं

    यही वह सिरा होता है जब हमारी स्मृतियों के बीज

    भविष्य के गर्भ में लेते हैं जन्म

    गुम हुई किताबें हमें अतीत की ग़लतियों के बारे में बताती हैं

    बताती है अपने आस-पास और दुनिया जहान के बारे में

    कोई ज्योतिषी तो नहीं होती ऐसी किताबें

    पर कभी-कभी वे भविष्य का पता भी बताती हैं

    गुम हुई किताबें रैक पर पड़ी

    किताबों से अक्सर ज़्यादा परेशान करती हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रत्यूष चंद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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