घूस

ghoos

अरुण कोलटकर

और अधिकअरुण कोलटकर

    हवलदार जैसे दिखा कि उसी के साथ

    अपने आप जेब के भीतर जाता है हाथ

    आजकल कहो कौन लेता नहीं पैसा

    कहते हैं यमराज पर वह भी है वैसा

    क्या फ़ालतू में पलंग के नीचे छिपता

    अरे यम को करो चुकता सिर्फ़ उस का हफ़्ता

    योगासन तीरथ, या दूसरे व्यायाम

    कुछ नहीं, यम को दो रिश्वती हरिनाम

    पैदा होने के सिवा तुमने क्या किया अपराध

    कहो उससे, ऐसा नहीं होगा अब इसके बाद

    इस बार छोड़ दो फिर नहीं लूँगा जनम

    मर जाने पर क्या आदमी की इज़्ज़त-शरम

    लोग कहेंगे, स्साला, मेरी होगी छी: थू

    मरना ही था तो पैदा हुआ ही क्यों तू

    अकारण बार-बार हमें लेना जनम

    बदलनी ही चाहिए इस क़ायदे की क़लम

    झोंक धूल, दे झूल, हो सटक सनंदन

    क्या ज़रूरत, दबा हाथ, मोड़ के दे रघुनंदन

    यमराज को कुछ नहीं बस दो रिश्वती हरिनाम

    जाएगी वह बीमारी ठोंक कर सलाम

    कहे बलवंतबुवा बार-बार क्यों वही

    इससे भला है मैं मरता ही नहीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 35)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवि के साथ चंद्रकांत पाटील एवं विष्णु खरे
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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