एक उम्र के बाद माँएँ
एक उम्र के बाद माँएँ
खुला छोड़ देती हैं लड़कियों को
उदास होने के लिए!
माँएँ सोचती हैं
ऐसा करने से
लड़कियाँ उदास नहीं रहेंगी,
कम-अज़-कम उन बातों के लिए तो नहीं
जिनके लिए रही थीं वे
या उनकी माँ
या उनकी माँ की माँ
मसलन माँएँ ले जाती हैं उन्हें
अपनी छाया में छुपाकर
उनके मनचाहे आदमी के पास,
मसलन माँएँ पूछ लेती हैं कभी-कभार
उन स्याह कोनों की बाबत
जिनसे डर लगता है
हर उम्र की लड़कियों को,
लेकिन अंदेशा हो अगर
कि कुरेदने भर से बढ़ जाएगा बेटियों का वहम
छोड़ देती हैं वे उन्हें अकेला
अपने हाल पर!
अकसर उन्हें हिम्मत देती
कहती हैं माँएँ,
बीत जाएँगे, जैसे भी होंगे
स्याह काले दिन,
हम हैं न तुम्हारे साथ!
कहती हैं माँएँ
और बुदबुदाती हैं ख़ुद से
कैसे बीतेंगे ये दिन, हे ईश्वर!
बुदबुदाती हैं माँएँ
और डरती हैं
सुन न लें कहीं लड़कियाँ
उदास न हो जाएँ कहीं लड़कियाँ
माँएँ खुला छोड़ देती हैं उन्हें
एक उम्र के बाद
और लड़कियाँ
डरते-झिझकते आ खड़ी होती हैं
अपने फ़ैसलों के रू-ब-रू
अपने फ़ैसलों के रू-ब-रू लड़कियाँ
भरती हैं संशय से
डरती हैं सुख से
पूछती हैं अपने फ़ैसलों से,
तुम्हीं सुख हो?
और घबराकर उतर आती हैं
सुख की सीढ़ियाँ
बदहवास भागती हैं लड़कियाँ—
बड़ी मुश्किल लगती है उन्हें
सुख की ज़िंदगी
बदहवास ढूँढ़ती हैं माँ को
ख़ुशी के अँधेरे में—
जो कहीं नहीं है
बदहवास पकड़ना चाहती हैं वे माँ को
जो नहीं रहेगी उनके साथ
सुख के किसी भी क्षण में!
माँएँ क्या जानती थीं
जहाँ छोड़ा था उन्होंने
उदासी से बचाने को,
वहीं हो जाएँगी उदास लड़कियाँ
एकाएक
अचानक
बिल्कुल नए सिरे से!
उदास होकर लड़कियाँ
लाँघ जाती हैं वह उम्र
जहाँ खुला छोड़ देती थीं माँएँ
उदास होने के लिए!
- पुस्तक : एक दिन लौटेगी लड़की (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : गगन गिल
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 1989
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