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गाड़ी संख्या: जीवन-एक्सप्रेस

gaDi sankhyah jivan eksapres

हर्षित मिश्र

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हर्षित मिश्र

गाड़ी संख्या: जीवन-एक्सप्रेस

हर्षित मिश्र

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    आओ, चढ़ते हैं एक ऐसी गाड़ी में,

    जिसका कोई अंक समय-सारणी में नहीं,

    ही स्मृतियों की पोथियों में दर्ज है।

    किन्तु वह चलती है— निरंतर, निःशब्द,

    कभी अंतर की गलियों से,

    तो कभी बाह्य संसार के कोलाहल तक।

    प्रतीक्षास्थल पर खड़ी हैं आकांक्षाएँ—

    जिनके पास टिकट है, पर गंतव्य नहीं।

    सपनों की गठरी लिए

    वो खड़ी हैं बुझे दीपों-सी।

    टिकट— जिसका मूल्य मुद्रा से नहीं,

    बल्कि चुकाया जाता है—

    कभी प्रेम की उपस्थिति से,

    तो कभी वियोग की अनकही पीड़ा से।

    इस गाड़ी के कुछ डिब्बे हैं—

    बाल्यावस्था के,

    जहाँ खिड़कियों से झाँकता है नीलिमा में घुला आकाश।

    जहाँ दृश्य भागते हैं

    मन की चंचलता-से।

    और कुछ...

    प्रौढ़ावस्था के—

    जहाँ सहयात्री कम,

    पर कुछ मौन चेहरे मिलते हैं—

    जिनमें समय की गहराई उतर चुकी होती है।

    साथ ही, कुछ पुरानी स्मृतियाँ भी—

    जो अब आसंदी पर बैठी हैं।

    मैंने एक आसंदी रिक्त रख छोड़ी है—

    तुम्हारे लिए।

    नाम लिखा है— संभावना।

    कोई आरक्षण नहीं,

    बस प्रतीक्षा है—

    कि तुम आओ,

    हौले से कहो—

    मैं भी चलूँगी वहाँ तक,

    जहाँ साथ उतरना संभव हो।

    इस गाड़ी का संचालन करता है समय,

    और परीक्षक है नियति।

    स्टेशनों के नाम हैं—

    “प्रारंभ”— जहाँ सब कुछ नव्य प्रतीत होता है,

    “विचलन”— जहाँ दिशा धुँधला जाती है,

    “स्वीकृति”— जहाँ जीवन को मौन स्वीकृति मिलती है,

    और “शांतिः”— जहाँ उतरते हैं सब अंत में, एक निश्चल शांति में।

    और मैं?

    मैं तो मात्र एक सहयात्री—

    जो नहीं चाहता कोई अंत,

    बस यह कि यह यात्रा कविता बन जाए,

    और उसका सबसे सुंदर छंद— तुम बनो।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हर्षित मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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