गड़ेरिया

gaDeriya

कृष्णमोहन झा

कृष्णमोहन झा

गड़ेरिया

कृष्णमोहन झा

और अधिककृष्णमोहन झा

     

    नागार्जुन को याद करते हुए

    हवा पानी और आकाश की तरह
    दिख सकता है कहीं भी वह
    यानी वहाँ भी
    जहाँ उसके होने की संभावना सबसे कम है
    अपनी आत्मा को तुम अगर
    अंदर से बाहर की ओर उलट दो
    तो उसके उजड़े हुए वन में तुम्हें वह 
    एक गाछ के नीचे बैठा दिखेगा निराकांक्ष
    अपनी लाठी बजाता हुआ अपनी भेड़ें चराता हुआ…
    लेकिन उसे जाने दो
    तुम तो आत्मा पर विश्वास नहीं करते
    कहते हो कि विज्ञान प्रमाणित नहीं करता उसे
    शायद ठीक कहते हो 
    गड़ेरिए को देखने से बहुत पहले
    गर्भ में ही तुम खो चुके अपना आत्म
    इसलिए अब धूल की तरह
    यहाँ-वहाँ उड़ते फिरते हो…
    लेकिन यह
    हवा-पानी और आसमान की तरह सच है
    कि अपनी भेड़ों से चुपचाप बतियाता हुआ
    कहीं भी दिख सकता है वह

    सिर्फ गिरिडीह में नहीं
    अलवर में भी
    रतलाम में ही नहीं
    चंडीगढ़ में भी
    यहाँ तक कि हयात के सामने रिंगरोड पर भी
    अपनी भेड़ों को ढूँढ़ता
    और नदियों को पुकारता हुआ
    अपने वन के लिए रोता
    और ॠतुओं के लिए बिसूरता हुआ दिख सकता है वह
    लेकिन तुम उसे देखते कहाँ हो
    तुम्हारे नगर की छत से जब उठने लगती है
    उसकी भेड़ के गोश्त की गंध
    एक अबूझ ज्वरग्रस्त पीड़ा में वह बड़बड़ाने लगता है…
    नहीं, वह पागल नहीं है
    न जाने इतिहास के किस अध्याय से
    हाँका लगाकर लाया हुआ कस्तूरी मृग है वह
    और उसका अपराध उसकी निष्कवच मौलिकता है
    सात किवाड़ों के भीतर
    जब तुम्हारा नगर डूब जाता है
    अपने वांछित अंधकार में
    अपनी अटूट यातना के थरथर प्रकाश में वह
    एक अभिशप्त देवदूत की तरह सड़क पर भटकता रहता है…

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृष्णमोहन झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए